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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) विचित: । 'व्यच व्याजीकरणे' (तु०प०) धातु से पूर्ववत् । (३) संवीत: । सम् उपसर्गपूर्वक व्ये संवरणे' (भ्वा०उ०) धातु से पूर्ववत्। सम्प्रसारण-प्रतिषेधः __(२६) लिटि वयो यः ।३८ । प०वि०-लिटि ७१ वय: ६ ।१ य: ६।१। अनु०-धातो:, सम्प्रसारणम्, न इति चानुवर्तते । अन्वय:-लिटि वयो धातोर्यः सम्प्रसारणं न । अर्थ:-लिटि प्रत्यये परतो वयो धातोर्यकारस्य सम्प्रसारणं न भवति । उदा०-उवाय, ऊयतुः, ऊयुः। आर्यभाषा: अर्थ-(लिटि) लिट् प्रत्यय परे होने पर (वय:) वय् (धातो:) धातु के (य:) यकार को (सम्प्रसारणम्) सम्प्रसारण (न) नहीं होता है। न सम्प्रसारणे सम्प्रसारणम् (६।१।३७) इस ज्ञापक से वय्' धातु के यकार को सम्प्रसारण प्राप्त था, अत: इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। उदा०-उवाय । उसने कपड़ा बुना। ऊयतुः । उन दोनों ने कपड़ा बुना। ऊयुः । उन सबने कपड़ा बुना। सिद्धि-(१) उवाय । वेञ्+लिट् । वय्+तिप् । वय्+णल् । वय्+अ। वय्-वय्+अ। उ अय्-वाय्+अ। उ-वाय+अ । उवाय। यहां वे तन्तुसन्ताने' (भ्वा०प०) धातु से लिट् प्रत्यय, वो वयि:' (२।४।४१) से वेञ्' के स्थान में वयि' आदेश और इस सूत्र से 'वय्' के यकार को सम्प्रसारण का प्रतिषेध होता है। लिटि धातोरनभ्यासस्य (६।१८) से वय' को द्वित्व होकर लिट्यभ्यासस्योभयेषाम् (६।१।१७) से 'वय्' के अभ्यास को सम्प्रसारण और 'सम्प्रसारणाच्च' (१।१।१०५) से उकार को पूर्वरूप एकादेश होता है। 'अत उपधाया:' (७ ।२।११६) से 'वय्’ को उपधावृद्धि होती है। (२) ऊयतुः, ऊयुः पदों की सिद्धि पूर्ववत् है (६ ।१ ।१६) । वकारादेश-विकल्प: (२७) वश्चास्यान्यतरस्यां किति।३६ । प०वि०-व: १।१ च अव्ययपदम्, अस्य ६१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्, किति ७।१।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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