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षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः
ઉદ૬ यहां पूर्वोक्त 'भ्रस्ज धातु से पूर्ववत् आर्धधातुक तृच्’ प्रत्यय है। इस सूत्र से 'भ्रस्ज्' धातु के रेफ और उपधाभूत सकार के स्थान में विकल्प-पक्ष में रम्' आगम होता है। 'रम्' आगम मित् होने से मिदचोऽन्यात् परः' (१।१।४६) से 'भ्रस्ज्' के अन्तिम अच् अकार से परे होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) भ्रष्टुम् । यहां 'भ्रस्ज' धातु से तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम् (३।३।१०) से आर्धधातुक 'तुमुन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) भटुंम् । यहां भ्रस्ज' धातु से पूर्ववत् आर्धधातुक तुमुन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से विकल्प-पक्ष में 'रम्' आगम है।
(५) भ्रष्टव्यम् । यहां 'भ्रस्ज' धातु से तव्यत्तव्यानीयरः' (३।१।९६) से आर्धधातुक तव्यत्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(६) भष्टव्यम् । यहां 'भ्रस्ज' धातु से पूर्ववत् आर्धधातुक तव्यत्' प्रत्यय है। इस सूत्र से विकल्प-पक्ष में 'रम्' आगम है।
(७) भ्रज्जनम् । यहां 'भ्रस्ज' धातु से 'ल्युट् च' (३।३।११५) से भाव-अर्थ में आर्धधातुक ल्युट्' प्रत्यय है। 'युवोरनाकौ' (७।१।१) से 'यु' के स्थान में 'अन' आदेश हेता है। झलां जश् झशि' (८।४।५३) से 'भ्रस्ज' के सकार के जश्त्व 'दकार' और इसको स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।४०) से चवर्ग जकार होता है।
(८) भर्जनम् । यहां 'भ्रस्ज' धातु से पूर्ववत् आर्धधातुक ल्युट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से विकल्प-पक्ष में 'रम्' आगम है। 'अचो रहाभ्यां द्वे' (८।४।४६) से यर् (जकार) को विकल्प से द्वित्व होता है-भर्जनम्, भजनम् । लोपादेशः
(३) अतो लोपः।४८। प०वि०-अत: ६१ लोप: १।१। अनु०-अङ्गस्य, आर्धधातुके इति चानुवर्तते । अन्वय:-अतोऽङ्गस्य अर्धधातुके लोपः। अर्थ:-अकारान्तस्याङ्गस्य आर्धधातुके परतो लोपो भवति । उदा०-चिकीर्षिता। चिकीर्षितुम् । चिकीर्षितव्यम् । धिनुत: । कृणुत:।
आर्यभाषा: अर्थ-(अत:) अकारान्त (अङ्गस्य) अङ्ग को (आर्धधातुके) आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप-आदेश होता है।