SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आकार आदेश होता है। तत्पश्चात् 'सन्यङो:' ( ६ |१ | ९ ) से द्वित्व, 'ह्रस्वः' (७/४/५९) से अभ्यास को ह्रस्व और 'दीर्घोऽकित:' ( ७ । ४ । ८३) से अभ्यास को दीर्घ होता है । तत्पश्चात् यङन्त 'जाजाय' धातु से 'लट्' आदि कार्य होते हैं । विकल्प-पक्ष में आकार आदेश नहीं है- जञ्जन्यते । 'नुगतोऽनुनासिकस्य' (७/४/८५) से अभ्यास को 'नुक्' आगम होता है। (५) सासायते, संसन्यते । 'षणु अवदाने' (त० उ० ) । (६) चाखायते, चखन्यते । 'खनु अवदारणे' (भ्वा०प०) । पूर्ववत् अभ्यास को 'नुक्' आगम और 'कुहोश्चुः' (७/४/६२ ) से अभ्यास को चुत्व होता है। आकारादेश - विकल्पः (८) तनोतेर्यकि । ४४ । प०वि०-तनोतेः ६ । १ यकि ७।१। अनु० - अङ्गस्य, आत्, विभाषा इति चानुवर्तते । अन्वयः - तनोतेरङ्गस्य यकि विभाषाऽऽत् । अर्थ:- तनोतेरङ्गस्य यकि प्रत्यये परतो विकल्पेनाऽऽकार आदेशो भवति । उदा० - तायते देवदत्तेन । तन्यते देवदत्तेन आर्यभाषाः अर्थ-(तनोतेः) तनोति (अङ्गस्ये) अंग को (यकि) यक् प्रत्यय परे होने पर ( विभाषा) विकल्प से (आत्) आकार आदेश होता है । उदा० - तायते देवदत्तेन । देवदत्त के द्वारा विस्तार किया जाता है। तन्यते देवदत्तेन । अर्थ पूर्ववत् है । सिद्धि- तायते । तन्+लट् । तन्+त। तन्+यक्+त। त आ+य+ते । तायते । यहां 'तनु विस्तारे' (तना० उ० ) धातु से 'वर्तमाने लट्' (३ । २ । १२३) से कर्म-अर्थ में 'लट्' प्रत्यय है । 'सार्वधातुके यक्' (३।१।६७ ) से 'यक्' विकरण - प्रत्यय होता है। इस सूत्र से 'तन्' अंग को यक्' प्रत्यय परे होने पर आकार आदेश होता है। विकल्प-पक्ष में आकार आदेश नहीं है- तन्यते । आकार-आदेश: (६) सनः क्तिचि लोपश्चास्यान्यतरस्याम् । ४५ । प०वि०-सनः ६ |१ क्तिचि ७ । १ लोपः १।१ च अव्ययपदम्, अस्य ६ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy