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________________ ५६५ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः आदेश-प्रकरणम् नलोपः __ (१) श्नान्नलोपः।२३। प०वि०-श्नात् ५।१ नलोप: १।१। स०-नस्य लोप इति नलोप: (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-अङ्गस्य इत्यनुवर्तते। अन्वय:-श्नाद् अङ्गस्य नलोपः। अर्थ:-श्नात्=श्नम्-प्रत्ययात् परस्य अगावयवस्य नकारस्य लोपो भवति। उदा०-अनक्ति देवदत्तः। भनक्ति यज्ञदत्त: । हिनस्ति ब्रह्मदत्तः । आर्यभाषा: अर्थ- (श्नात्) श्नम् प्रत्यय से परे (अङ्गस्य) अंग के अवयवभूत (नलोप:) नकार का लोप होता है। उदा०-अनक्ति देवदत्तः । देवदत्त प्रकट करता है। भनक्ति यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त तोड़ता है। हिनस्ति ब्रह्मदत्तः । ब्रह्मदत्त हिंसा करता है (मारता है)। सिद्धि-(१) अनक्ति । अङ्ग्+लट् । अज्+तिम् । अश्नम् न् ज्+ति । अ न ज्+ति । अन०+ति। अनग्+ति। अनक्+ति। अनक्ति। यहां 'अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु' (रुधा०प०) धातु से वर्तमाने लट् (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय, तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लादेश तिप्' और रुधादिभ्यः श्नम्।३।११७८) से 'श्नम्' विकरण-प्रत्यय होता है। प्रत्यय के मित्' होने से यह मिदचोऽन्यात परः' (१।१।४७) से 'अज्' के अन्त्य अच् अकार से परे रहता है। इस सूत्र से इस श्नम्' से परवर्ती नकार का लोप होता है। अज में दृश्यमान जकार वस्तुत: नकार है, 'स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।४०) से इसे चवर्ग अकार हो गया है। ऐसा ही सर्वत्र जानें। (२) भनक्ति । यहां 'भञ्जो आमर्दने (रुधा०प०) धातु से लट्' आदि सब कार्य पूर्ववत् है। (३) हिनस्ति। यहां 'हिसि हिंसायाम्' (रुधा०प०) धातु के इदित् होने से 'इदितो नुम् धातो:' (७।१।५८) से नुम्' आगम होता है। इस सूत्र से 'श्नम्' से परवर्ती इस नुम्' के नकार का लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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