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________________ ५३० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-नीत्तम् । नि+दा+क्त । नि+दा+त। नि+द् त्+त् । नि+तत्-त । नि+to+त। नीत्त+सु । नीत्तम्। यहां नि' और 'त्त' शब्दों का कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास है। 'त' शब्द में 'डुदाञ् दाने (जु०उ०) धातु से नपुंसके भावे क्त:' (३।३।११४) से भाव अर्थ में 'क्त' प्रत्यय है। 'अच उपसर्गात् त:' (७।४।४७) से 'दा' धातु के अन्त्य आकार को तकार-आदेश होता है तत्पश्चात् ‘खरि च' (८।४।५५) से दकार को चर् तकार आदेश होता है। 'झरो झरि सवर्णे (८।४।६५) से अन्त्य तकार को लोप हो जाता है। इस सूत्र से इगन्त नि' उपसर्ग को दा-धातुसम्बन्धी तकारादि आदेश के उत्तरपद में होने पर दीर्घ होता है। विशेष: यद्यपि 'अच उपसर्गात्त:' (७।४।४७) से 'दा' धातु के अन्त्य आकार को तकार आदेश होता है किन्तु दकार को 'खरि च' (८।४।५५) से विहित तकार को मानकर यह तकारादि आदेश है। इस सूत्र से दीर्घविधि करते समय चर्व से विहित तकार असिद्ध नहीं होता है, अपितु दीर्घ-आश्रय से सिद्ध माना जाता है, यदि उक्त तकार आदेश असिद्ध हो जाये तो यह दीर्घविधान अनर्थक हो जायेगा। दीर्घः . (१२) अष्टन: संज्ञायाम्।१२५ । प०वि०-अष्टन: ६।१ संज्ञायाम् ७।१। अनु०-उत्तरपदे, संहितायाम्, दीर्घ इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां संज्ञायाम् अष्टन उत्तरपदे दीर्घः । अर्थ:-संहितायां संज्ञायां च विषयेऽष्टन्-शब्दस्य उत्तरपदे परतो दीर्घो भवति। उदा०-अष्टौ वक्राणि यस्य स:-अष्टावक्र:। अष्टाबन्धुरः। अष्टापदम्। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) संहिता और (संज्ञायाम्) संज्ञाविषय में (अष्टन:) अष्टन् शब्द को (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (दीर्घ:) दीर्घ होता है। उदा०-अष्टावक्र: । अष्टावक्र नामक ऋषि। अष्टाबन्धुरः । आठ अंगों में लहराता हुआ-हंस । अष्टापदम् । आठ चरणोंवाला। सिद्धि-अष्टावक्र: । यहां अष्टन् और वक्र शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से संज्ञाविषय में अष्टन् शब्द को उत्तरपद परे होने पर दीर्घ होता है। नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२।७) से नकार का लोप हो जाता है। ऐसे ही-अष्टाबन्धुरः, अष्टापदम् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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