SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 542
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ५२५ आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) संहिता और (संज्ञायाम्) संज्ञाविषय में (पूर्वस्य) पूर्ववर्ती (अण:) अण् को (वले) वलच् प्रत्यय परे होने पर (दीर्घ:) दीर्घ होता है। उदा०-दन्तावल: । बड़े दांतोंवाला-हाथी। कृषीवल: । कृषिवाला-किसान। आसुतीवल: । आसववाला-शौण्डिक (शराब बेचनेवाला)। सिद्धि-(१) दन्तावल: । यहां दन्त शब्द से 'दन्तशिखात् संज्ञायाम् (५।२।११३) से मतुप्-अर्थ में वलच् प्रत्यय है। इस सूत्र से संज्ञाविषय में पूर्ववर्ती अकार अण् को वलच् प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। (२) कृषीवल: । यहां कृषि शब्द से रजःकृष्यासुतिपरिषदो वलच्' (५।२।११२) से वलच् प्रत्यय है। दीर्घ-कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-आसुतीवल: । विशेष: यहां वलच्' प्रत्यय है, अत: उत्तरपदे' की अनुवृत्ति नहीं की जाती है। दीर्घः (६) मतौ बहचोऽनजिरादीनाम् ।११६ | प०वि०-मतौ ७।१ बहच: ६१ अनजिरादीनाम् ६।३ । स०-बहवोऽचो यस्मिन् स बहच्, तस्य-बहच: (बहुव्रीहिः)। अजिर आदिर्येषां ते अजिरादयः, न अजिरादय इति अनजिरादयः, तेषाम्अनजिरादीनाम् (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)। अनु०-पूर्वस्य, दीर्घः, अण:, संहितायाम्, संज्ञायामिति चानुवर्तते। 'मतुप्' इत्यत्र प्रत्ययोऽत उत्तरपदे इति नानुवर्तते।। .. अन्वय:-संहितायां संज्ञायां अनजिरादीनां बहच: पूर्वस्याणो मतौ दीर्घ: । अर्थ:-संहितायां संज्ञायां च विषयेऽजिरादिवर्जितस्य बहवः शब्दस्य पूर्वस्याणो मतौ परतो दीर्घो भवति । उदा०-उदुम्बरा यस्यां सन्तीति उदुम्बरावती। मशकावती। वीरणावती। पुष्करावती। अमरावती। आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) संहिता और (संज्ञायाम्) संज्ञाविष्य में (अनजिरादीनाम्) अजिर-आदि शब्दों से भिन्न (बहच:) बहुत अचोंवाले शब्द के (पूर्वस्य) पूर्ववर्ती (अण:) अण् को (मतौ) मतुप् प्रत्यय परे होने पर (दीर्घ:) दीर्घ होता है। उदा०-उदुम्बरावती। मशकावती । वीरणावती। पुष्करावती। अमरावती। ये नदीविशेष के संयोग से देशविशेष की संज्ञायें हैं।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy