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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः सिद्धि-सज्योतिः। यहां समान और ज्यातिष् शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से समान के स्थान में ज्योतिष् उत्तरपद होने पर स-आदेश होता है। ऐसे ही-सजनपद:, आदि।
‘सनामा' यहां सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ' (६।४।९) से तथा सवयाः' यहां अत्वसन्तस्य चाधातो:' (६।४।१४) से दीर्घ होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। स-आदेशः
(६) चरणे ब्रह्मचारिणि।८६। प०वि०-चरणे ७।१ ब्रह्मचारिणि ७।१ ।
स०-ब्रह्मवेदः, वेदस्याध्यायनार्थं यद् व्रतं तदपि 'ब्रह्म' इत्युच्यते। ब्रह्म वेदाध्ययनव्रतं चरतीति ब्रह्मचारी (उपपदतत्पुरुषः)।
अनु०-उत्तरपदे, समानस्य, स इति चानुवर्तते। अन्वय:-समानस्य ब्रह्मचारिणि उत्तरपदे स:, चरणे।
अर्थ:-समानशब्दस्य स्थाने ब्रह्मचारिणि उत्तरपदे परत: स-आदेशो भवति, चरणे गम्यमाने।
उदा०-समानो ब्रह्मचारीति सब्रह्मचारी। समाने ब्रह्मणि व्रतचारीति सब्रह्मचारी।
आर्यभाषा: अर्थ-(समानस्य) समान शब्द के स्थान में (ब्रह्मचारिणि) ब्रह्मचारी (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (स:) स-आदेश होता है (चरणे) यदि वहां चरण अर्थ अभिधेय हो। चरण वैदिक विद्यापीठ।
उदा०-सब्रह्मचारी । ब्रह्म शब्द का अर्थ वेद है। वेद के अध्ययन के लिये जो व्रत किया जाता है वह भी ब्रह्म' कहाता है। जो एक काल में वेद की एक शाखाविशेष के लिये व्रत का अनुष्ठान करते हैं, वे परस्पर सब्रह्मचारी कहाते हैं।
सिद्धि-सब्रह्मचारी। यहां समान और ब्रह्मचारी शब्दों का पूर्वापरप्रथमचरमजघन्यसमानमध्यमध्यमवीराश्च' (२।१५८) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इस सत्र से शब्द के स्थान में ब्रह्मचारी उत्तरपद होने पर तथा चरणविशेष अर्थ में स-आदेश होता है। स-आदेशः
(१०) तीर्थे ये ८७। प०वि०-तीर्थे ७।१ ये ७१। अनु०-उत्तरपदे, समानस्य, स इति चानुवर्तते ।