________________
षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
४८१ उदा०-(सत्य) सत्यकार: । सत्य प्रतिज्ञावाला। (अगद) अगदङ्कारः। औषध बनानेवाला। 'विषप्रतिपक्षद्रव्यविशेषकरणम्' (पदमञ्जरी)।
सिद्धि-सत्यकारः । यहां सत्य और कार शब्दों का 'उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। 'सत्य' कर्म-उपपद 'डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से कर्मण्यण् (३।२।१) से 'अण्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'सत्य' शब्द को कार' उत्तरपद होने पर 'मुम्' आगम होता है। मोऽनुस्वारः' (८।३।२३) से मकार को अनुस्वार और अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः' (८।४।५८) से अनुस्वार को परसवर्ण डकार होता है। ऐसे ही-अगदङ्कारः। मुम्-आगमः
(५) श्येनतिलस्य पाते ७१। प०वि०-श्येन-तिलस्य ६।१ पाते ७१ जे ७।१ ।
स०-श्येनश्च तिलं च एतयो: समाहार: श्येनतिलम्, तस्य श्येनतिलस्य (समाहारद्वन्द्वः)।
अनु०-उत्तरपदे, मुम् इति चानुवर्तते । अन्वय:-श्येनतिलस्य पाते उत्तरपदे जे मुम्।
अर्थ:-श्येनतिलयो: शब्दयो: पाते शब्दे उत्तरपदे से प्रत्यये परतो मुमागमो भवति।
उदा०- (श्येन:) श्येनपातोऽस्यां क्रीडायां वर्तते सा श्यैनंपाता मृगया। (तिलम्) तिलपातोऽस्यां क्रीडायां वर्तते सा तैलम्पाता क्रीडा।
आर्यभाषा: अर्थ-(श्येनतिलस्य) श्येन और तिल शब्दों को (पाते) पात शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद में (जे) अ-प्रत्यय परे होने पर (मुम्) मुम् आगम होता है।
- उदा०-(श्येन) श्यैनंपाता मृगया। वह मृगया (शिकार खेलना) कि जिसमें बाज गिराया जाता है। (तिल) तैलम्पाता मृगया। वह मृगया कि जिसमें तिल गिराया जाता है।
सिद्धि-श्यैनम्पाता। यहां श्येन और पात शब्दों का षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'पात्' शब्द में पत्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से 'भावे (३।३।१८) से भाव अर्थ में 'घ' प्रत्यय है। तत्पश्चात् 'पात' शब्द से घञ: साऽस्यां क्रियेति जः' (४।२।५७) से ज' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से श्येन' शब्द को 'पात' शब्द उत्तरपद होने पर कि जिससे अ' प्रत्यय परे है, मुम् आगम होता है। तद्धितेष्वचामादे:' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि होती है। ऐसे ही-तैलम्पाता क्रीडा ।