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________________ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पाद्रः ३१ अर्थ:-अभि-अवपूर्वस्य श्यो धातोर्निष्ठायां परतो विकल्पेन सम्प्रसारणं भवति । उदा०- (अभिः) अभिशीनम्, अभिश्यानम् । (अव: ) अवशीनम्, अवश्यानम् । आर्यभाषाः अर्थ- (अभ्यवपूर्वस्य) अभि, अव उपसर्गपूर्वक (श्यः) श्या (धातोः) धातु को (निष्ठायाम्) निष्ठा प्रत्यय परे होने पर ( विभाषा) विकल्प से (सम्प्रसारणम्) सम्प्रसारण होता है । उदा०- - (अभि) अभिशीनम्, अभिश्यानम् | अधिक जमा हुआ (कठोर) । (अव) अवशीनम्, अवश्यानम् । कम जमा हुआ (ढीला) । सिद्धि-(१) अभिशीनम् । अभि+श्या+क्त । अभि+श् इ आ+त। अभि+शि+न । अभि+शी+न। अभिशीन+सु । अभिशीनम् । यहां अभि उपसर्गपूर्वक 'श्या' धातु को निष्ठा प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से सम्प्रसारण होता है। 'श्योऽस्पर्शे' (८/२/४७) से निष्ठा के तकार को नकार आदेश होता है। ऐसे ही - अवशीनम् । (२) अभिश्यानम् । यहां अभि उपसर्गपूर्वक श्या धातु को निष्ठा प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से विकल्प पक्ष में सम्प्रसारण नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - अवश्यानम् । निपातनम् (१५) शृतं पाके । २७ । प०वि० - श्रुतम् १ ।१ पाके ७ । १ । अनु०-विभाषा इत्यनुवर्तते । अन्वयः -पाके शृतं विभाषा । अर्थ:-पाकेऽर्थे ‘शृतम्' इति पदं विकल्पेन निपात्यते । उदा० शृतं क्षीरम् शृतं हविः । - आर्यभाषाः अर्थ-(पाके) पाक अर्थ में (श्रुतम् ) श्रुत यह पद ( विभाषा ) विकल्प से निपातित है। उदा० - शृतं क्षीरम् । पका हुआ दूध । शृतं हविः । पकी हुई आहुति । सिद्धि-शृतम् । श्रा+क्त । श्रु+त। श्रुत+सु । शृतम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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