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________________ ३० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां 'श्यैङ् गतौ' (भ्वा०आ०) धातु से निष्ठा' (२।२।३६) से भूतकाल में निष्ठा-क्त प्रत्यय है। इस सूत्र से 'श्या' के यकार को इकार सम्प्रसारण, सम्प्रसारणाच्च (६।१।१०५) से आकार को पूर्वरूप एकादेश और हलः' (६।४।२) से इकार को दीर्घ होता है। 'श्योऽस्पर्शे (८।२।४७) से निष्ठा के तकार को नकार आदेश होता है। (२) शीतम् । यहां स्पर्श अर्थ में निष्ठा के तकार को नकार आदेश नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है। सम्प्रसारणम् (१३) प्रतेश्च ।२५। प०वि०-प्रते: ६।१ च अव्ययपदम्। अनु०-धातो:, सम्प्रसारणम्, निष्ठायाम्, श्य इति चानुवर्तते। अन्वयः-प्रतेश्च श्यो धातोर्निष्ठायां सम्प्रसारणम् । अर्थ:-प्रतेरुत्तरस्य च श्यो धातोर्निष्ठायां परत: सम्प्रसारणं भवति। उदा०-प्रतिशीन:, प्रतिशीनवान् । आर्यभाषा: अर्थ-(प्रते:) प्रति उपसर्ग से परे (च) भी (श्य:) श्या (धातो:) धातु को (निष्ठायाम्) निष्ठा प्रत्यय परे होने पर (सम्प्रसारणम्) सम्प्रसारण होता है। उदा०-प्रतिशीन:, प्रतिशीनवान् । उसने धरना दिया। सिद्धि-प्रतिशीन: । प्रति+श्या+क्त। प्रति+श् . इ आ+त। प्रति+शि+न। प्रति+शी+नः। प्रतिशीन+सु। अतिशीनः।। यहां प्रति उपसर्ग से परे भी 'श्या' धातु को इस सूत्र से सम्प्रसारण होता है। 'श्योऽस्पर्शे (८।२।४७) से निष्ठा के तकार को नकार आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-प्रतिशीनवान् । सम्प्रसारणम् (१४) विभाषाऽभ्यवपूर्वस्य ।२६ । प०वि०-विभाषा ११ अभि-अवपूर्वस्य ६ ।१ । स०-अभिश्च अवश्च तौ अभ्यवौ, अभ्यवौ पूर्वी यस्य सोऽभ्यवपूर्वः, तस्य-अभ्यवपूर्वस्य। अनु०-धातो:, सम्प्रसारणम्, निष्ठायाम्, श्य इति चानुवर्तते । अन्वय:-अभ्यवपूर्वस्य श्यो धातोर्निष्ठायां विभाषा सम्प्रसारणम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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