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________________ ४५४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् पूर्व सूत्रोक्त से अन्य शेष शब्द कौन है ? जो कि डी-अन्त नहीं है और नदी-संज्ञक है जैसे कि-ब्रह्मबन्धू और जो कि डी-अन्त है तथा एकाच् है जैसे कि-स्त्री। उदा०-(घ) ब्रह्मबन्धूतरा, ब्रह्मबन्धुतरा। दोनों में से अधिक ब्रह्मबन्धू (पतित ब्राह्मणी)। ब्रह्मबन्धूतमा, ब्रह्मबन्धुतमा। बहुत में से अधिक ब्रह्मबन्धू। कल्पप् आदि के उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृतभाग में देख लेवें। सिद्धि-ब्रह्मबन्धूतरा' आदि पदों की सिद्धि ब्राह्मणितरा' आदि पदों के समान है, यहां केवल ह्रस्व-विकल्प विशेष है। हस्व-विकल्प: (३) उगितश्च।४५। प०वि०-उगित: ६१ च अव्ययपदम्। स०-उक् इद् यस्य स उगित्, तस्य-उगित: (बहुव्रीहि:)। अनु०-उत्तरपदे, घरूपकल्पचेलड्ब्रुवगोत्रमतहतेषु, ह्रस्व:, नद्या:, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते । अन्वय:-उगितो नद्याश्च घरूपकल्पचेलब्रुवगोत्रमतहतेषु अन्यतरस्यां ह्रस्व:। अर्थ:-उगित्सम्बन्धिनो नदीसंज्ञकस्य शब्दस्य च घरूपकल्पचेलड्ब्रुवगोत्रमतहतेषु उत्तरपदेषु विकल्पेन ह्रस्वो भवति । उदाहरणानिउत्तरपदम् रूपम् भाषार्थ: (घ: (१) श्रेयसीतरा, श्रेयसितरा दोनों में से अधिक प्रशस्या नारी। प्रत्यय:) (२) श्रेयसीतमा, श्रेयसितमा बहुत में अधिक प्रशस्या नारी। (१) विदुषीतरा, विदुषितरा दोनों में से अधिक विदुषी। (२) विदुषीतमा, विदुषितमा बहुत में अधिक विदुषी। (रूपप्- (१) श्रेयसीरूपा, श्रेयसिरूपा दोनों में से अत्यधिक प्रशस्या नारी। प्रत्यय:) (२) विदुषीरूपा, विदुषिरूपा प्रशंसनीय विदुषी। (कल्पप्- (१) श्रेयसीकल्पा, श्रेयसिकल्पा श्रेयसी नारी से कम नहीं। प्रत्यय:) (२) विदुषीकल्पा, विदुषिकल्पा विदुषी से कम नहीं।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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