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________________ ४४४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ___ स०-संज्ञा च पूरणी च ते संज्ञापूरण्यौ, तयो:-संज्ञापूरण्यो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-उत्तरपदे, स्त्रियाः, पुंवत्, भाषितपुंस्कादनूङ्, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-भाषितपुंस्कादनूङ: संज्ञापूरण्योश्च स्त्रिया: उत्तरपदे पुंवन्न । अर्थ:-भाषितपुंस्कादनूङ: यस्माद् भाषितपुंस्काच्छब्दाद् ऊङ् प्रत्ययो न कृतस्तस्य संज्ञावाचिन: पूरणप्रत्ययान्तस्य च स्त्रीलिङ्गस्य शब्दस्य उत्तरपदे परत: पुंलिङ्गशब्दस्येव रूपं न भवति। उदा०-(संज्ञा) दत्ताभार्यः । गुप्ताभार्य: । दत्तापाशा। गुप्तापाशा। दत्तायते। गुप्तायते । दत्तामानिनी । गुप्तामानिनी। (पूरणी) पञ्चमीभार्यः । दशमीभार्यः । पञ्चमीपाशा। दशमीपाशा। पञ्चमीयते। दशमीयते । पञ्चमीमानिनी। दशमीमानिनी। ___आर्यभाषा: अर्थ-(भाषितपुंस्कादनूङ्) जिस शब्द ने समान आकृति में पुंलिङ्ग अर्थ को कहा है, उस उप्रत्यय से रहित, (संज्ञापूरण्यो:) संज्ञावाची और पूरणप्रत्ययान्त (स्त्रिया:) स्त्रीलिङ्ग शब्द के स्थान में (च) भी (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (पुंवत्) पुंलिङ्ग शब्द के समान रूप (न) नहीं होता है। __उदा०-(संज्ञा) दत्ताभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी दत्ता नामिका भार्या है। गुप्ताभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी गुप्ता नामिका भार्या है। दत्तापाशा । दत्ता नामिका निन्दित नारी। गुप्तापाशा । गुप्ता नामिका निन्दित नारी। दत्तायते । दत्ता नामिका नारी के समान आचरण करनेवाली। गुप्तायते। गुप्ता नामिका नारी के समान आचरण करनेवाली। दत्तामानिनी। स्वयं को दत्ता नामिका नारी माननेवाली। गुप्तामानिनी। स्वयं को गुप्ता नामिका नारी माननेवाली। (पूरणी) पञ्चमीभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी पांचवीं भार्या है। दशमीभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी दशवीं भार्या है। पञ्चमीपाशा। पांचवीं निन्दित नारी। दशमीपाशा। दशवी निन्दित नारी। पञ्चमीयते। वह नारी कि जो पांचवीं के समान आचरण करती है। दशमीयते। वह नारी कि जो दशवीं के समान आचरण करती है। पञ्चमीमानिनी। स्वयं को पांचवीं माननेवाली नारी। दशमीमानिनी। स्वयं को दशवीं माननेवाली नारी। सिद्धि-(१) दत्ताभार्यः। यहां दत्ता और भार्या शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से भाषितपुंस्क, ऊप्रत्यय से रहित, संज्ञावाची दत्ता शब्द भार्या उत्तरपद होने पर पुंवद्भाव नहीं होता है। 'स्त्रिया: वद्' (६।३।३४) से पुंवद्भाव प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-गुप्ताभार्यः।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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