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षष्टाध्यायस्य तृतीयः पादः
४४३ मद्रिका इवाचरति-मद्रिकायते। वृजिकायते। (मानिन्) मद्रिकामानिनी। वृजिकामानिनी।
आर्यभाषा: अर्थ-(भाषितपुंस्कादनूङ्) जिस शब्द ने समान आकृति में पुंलिङ्ग अर्थ को कहा है, उस ऊप्रत्यय से रहित (कोपधायाः) ककार उपधावाले (स्त्रियाः) स्त्रीलिङ्ग शब्द के स्थान में (पुंवत्) पुंलिङ्ग शब्द के समान रूप (न) नहीं होता है।
उदा०-(स्त्रियां समानाधिकरणे उत्तरपदे) पाचिकाभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी भार्या (पत्नी) पाचिका है। कारिकाभार्यः । वह पुरुष कि जिसकी भार्या कारिका कार्य करनेवाली है। मद्रिकाभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी भार्या मद्र जनपद की है। वजिकाभार्यः। वह पुरुष कि जिसकी भार्या वृजि जनपद की है। (तसिल आदि में) मद्रिकाकल्पा। मद्रिका नारी से कुछ कम। (क्यङ्) मद्रिकायते। जो नारी मद्रिका के समान आचरण करती है। वृजिकायते। जो नारी वृजिका के समान आचरण करती है। (मानिन्) मद्रिकामानिनी। स्वयं को मद्रिका माननेवाली नारी। वृजिकामानिनी। स्वयं को वृजिका माननेवाली नारी।
सिद्धि-(१) पाचिकाभार्य: । यहां पाचिका और भार्या शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से भाषितपुंस्क, ऊङ्-प्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग पाचिका शब्द को समानाधिकरणवाले स्त्रीलिङ्ग भार्या-शब्द उत्तरपद होने पर पुंवद्भाव का प्रतिषेध है, क्योंकि 'पाचिका' ककारोपध है। यहां स्त्रिया: पुंवत०' (६।३।३४) से पुंवद्भाव प्राप्त था, उसका इस सूत्र से प्रतिषेध किया गया है। ऐसे ही-कारिकाभार्य: आदि।
(२) मद्रिकाकल्पा। यहां मद्रिका' शब्द से ईषदसमाप्तौ कल्पब्देश्यदेशीयरः' (५।३।६७) से कल्पप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से मद्रिका शब्द को कल्पप् प्रत्यय परे होने पर पुंवद्भाव का प्रतिषेध है, क्योंकि मद्रिका शब्द ककारोपध है। यहां तसिलादिष्वाकृत्वसुचः' (६।३।३५) से पुंवद्भाव प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है।
(३) मद्रिकायते । यहां मद्रिका' शब्द से कर्तुः क्यङ् सलोपश्च' (३।१।११) से आचार अर्थ में क्यङ् प्रत्यय है। इस सूत्र से मद्रिका शब्द को क्यङ् प्रत्यय परे होने पर पुंवद्भाव का प्रतिषेध है, क्योंकि मद्रिका-शब्द ककारोपध है। यहां क्यङ्मानिनोश्च' (६ ॥३।३६) से पुंवद्भाव प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। ऐसे हीवृजिकायते, मद्रिकामानिनी, वृजिकामानिनी। पुंवद्भाव-प्रतिषेधः
(५) संज्ञापूरण्योश्च।३८ प०वि०-संज्ञा-पूरण्यो: ६।२ च अव्ययपदम् ।