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________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ४१७ सिद्धि - (१) आत्मनापञ्चमः | यहां आत्मन् और पञ्चम शब्दों का तृतीया तत्कृतार्थेन गुणवचनेन ' (२1१1३० ) इस सूत्र में तृतीया' इस योग विभाग से तृतीया तत्पुरुष समास है और यहां वा०- 'तृतीयाविधाने प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम्' (२।३।१८) से तृतीया विभक्ति होती है। इस सूत्र से आत्मन् शब्द से परे तृतीया विभक्ति का पूरण-प्रत्ययान्त पञ्चम शब्द उत्तरपद होने पर लुक् नहीं होता है। 'पञ्चमः' शब्द में 'नान्तादसंख्यादेर्मट्' (५।२।४९) से पञ्चन् शब्द से पूरणार्थक डट् प्रत्यय और उसे मट् आगम है। (२) आत्मनाषष्ठः। यहां आत्मन् और षष्ठ शब्दों का पूर्ववत् तृतीया तत्पुरुष समास है। षष्ठ शब्द में 'षट्कतिकतिपयचतुरां थुक्' (५ '२/५१) से षष् शब्द से पूरणार्थक डट् प्रत्यय और थुक् आगम है। शेष कार्य पूर्ववत् है । चतुर्थी-अलुक् (७) वैयाकरणाख्यायां चतुर्थ्याः ॥ ७ । प०वि०-वैयाकरण-आख्यायाम् ७ । १ चतुर्थ्याः ६ । १ । स०-वैयाकरणानाम् आख्या इति वैयाकरणाख्या, तस्याम् - वैयाकरणाख्यायाम् (षष्ठीतत्पुरुषः) । आख्या = संज्ञा इत्यर्थः । अनु० - अलुक, उत्तरपदे, आत्मन इति चानुवर्तते । अन्वयः-वैयाकरणाख्यायाम् आत्मनश्चतुर्थ्या उत्तरपदेऽलुक् । अर्थः-वैयाकरणाख्यायां विषये आत्मनः शब्दात् परस्याश्चतुर्थ्या उत्तरपदेऽलुग् भवति। उदा० - आत्मने पदमिति आत्मनेपदम् । आत्मनेभाषः । आर्यभाषाः अर्थ- (वैयाकरणाख्यायाम्) वैयाकरणों की संज्ञा विषय में (आत्मनः ) आत्मन् शब्द से परे (चतुर्थ्या:) चतुर्थी विभक्ति का ( उत्तरपदे) उत्तरपदं परे होने पर (अलुक) लुक् नहीं होता है। उदा०० - आत्मनेपदम् । अपने लिये प्रयुक्त होनेवाला पद । आत्मनेभाष: । अर्थ पूर्ववत् । सिद्धि-आत्मनेपदम् । यहां आत्मन् और पद शब्दों का 'चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितै: ' (२1१/३६) में 'चतुर्थी' इस योगविभाग से तदर्थ - अर्थ में चतुर्थी तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वैयाकरणों की संज्ञा विशेष में आत्मन् शब्द से परे चतुर्थी विभक्ति का 'पद' उत्तरपद होने पर लुक् नहीं होता है। ऐसे ही - आत्मनेभाष: ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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