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________________ ४१२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्तोदात्तम् (५७) परादिश्छन्दसि बहुलम् ।१६६ | प०वि०-परादि: १।१ छन्दसि ७ ।१ बहुलम् १।१ । स०-परस्य आदिरिति परादि: (षष्ठीतत्पुरुष:)। अत्र पर-शब्देन परगत: सक्थ-शब्दो गृह्यते। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, समासे, इति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि समासे परम् सक्थम् उत्तरपदं बहुलम् आदिः । अर्थ:-छन्दसि विषये समासे च परम्=सक्थमित्युत्तरपदं बहुलम् आधुदात्तं भवति। उदा०-अजिसक्थमालभेत । त्वाष्ट्रौ लोमसक्यौ (तै०सं० ५ ।५।२३।१)। अत्र बहुलवचनात् पदान्तरे समासान्तरे चादिरुदात्तो भवति-ऋजुबाहुँ: (बहुव्रीहिः)। वाक्पति:, चित्पति: (षष्ठीतत्पुरुषः)। आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में और (समासे) समास मात्र में (परम्) परोक्त पश्चात् कहा सक्थ (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (बहुलम्) प्रायश: (आदिः) आधुदात्त होता है। उदा०-अजिसक्थमालभेत । अजिसक्थम् चमकीली/चन्दनादि से लिप्त जंघा। त्वाष्ट्रौ लोमसक्थौ । लोमसक्थम् लोमवाली जंघा। सिद्धि-अजिसक्थम् । यहां अजि और सक्थि शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' (२।१।५७) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इस समास में सक्थ' उत्तरपद को आधुदात्त स्वर होता है। 'बहुव्रीहौ सक्थ्यक्ष्णो: स्वागात षच्' (५।४।११३) से समासान्त 'अच्' प्रत्यय होकर बहुव्रीहि समास में ही सक्थ' शब्द सिद्ध होता है किन्तु बहुलवचन से छन्द में बहुव्रीहि से अन्यत्र भी सक्थ' शब्द को आधुदात्त स्वर होता है। यहां बहुलवचन से सक्थ से भिन्न पदों में तथा अन्य समासों में भी छन्द में आधुदात्त स्वर होता है-ऋजुबाहुः । वह पुरुष कि जिसकी भुजायें ऋजु-सरल है। यहां बहुव्रीहि समास में भी उत्तरपद को आधुदात्त स्वर होता है जबकि बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम्' (६।२।१) से बहुव्रीहि समास में पूर्वपद को प्रकृतिस्वर का विधान है। वाक्पति: और चित्पतिः शब्दों में षष्ठीतत्पुरुष है। यहां समासस्य (६।१।२२३) से समास को अन्तोदात्त स्वर प्राप्त है किन्तु छन्द में उत्तरपद पति-शब्द को आधुदात्त स्वर होता है। यह सब बहुल-वचन की महिमा है। इति पण्डितसुदर्शनदेवाचार्यविरचिते पाणिनीयाष्टाध्यायीप्रवचने षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः।।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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