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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-समासेऽनिधाने नेरुपसर्गाद् उत्तरपदम् अन्त उदात्त: ।
अर्थ:-समासमात्रेऽनिधाने चार्थे नेरुपसर्गात् परम् उत्तरपदम् अन्तोदात्तं भवति।
उदा०-निगतानि मूलानि यस्य तत्-निमूलम् (बहुव्रीहि:)। निगतं मूलमिति निमूलम् (प्रादितत्पुरुषः) । न्यक्षम्। नतृणम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(समासे) समास मात्र में (अनिधाने) प्रकाशित-प्रकट अर्थ में नि:) नि (उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-निमूलम् । जिसका मूल निकला हुआ वह वृक्ष आदि (बहुव्रीहि)। निमूलम् । निकला हुआ मूल (प्रादितत्पुरुष)। न्यक्षम् । जिसका अक्ष (धुरा) निकला हुआ है वह रथ आदि (बहुव्रीहि)। निकला हुआ अक्ष (प्रादि०)। नितृणम् । जिसके तृण निकले हुये वह छप्पर आदि (बहुव्रीहि)। निकले हुये तृण (प्रादि०)।
सिद्धि-निमूलम् । यहां नि और मूल शब्दों का अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस समास में अनिधान (प्रकट) अर्थ में नि-उपसर्ग से परे मूल उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-न्यक्षम्, नितृणम्। ___ यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास भी होता है। अन्तोदात्तम्
(५१) प्रतेरंश्वादयस्तत्पुरुष।१६३ । प०वि०-प्रते: ५ ।१ अंशु-आदय: १।३ तत्पुरुषे ७।१। स०-अशु आदिर्येषां ते-अंश्वादय: (बहुव्रीहि:)। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, समासे, उपसर्गादिति चानुवर्तते।
अन्वय:-तत्पुरुष समासे प्रतेरुपसर्गाद् अंश्वादय उत्तरपदम् अन्त उदात्त:।
अर्थ:-तत्पुरुष समासे प्रतेरुपसर्गात् पराणि अंश्वादीनि उत्तरपदानि अन्तोदात्तानि भवन्ति।
उदा०-प्रतिगतोऽशुरिति प्रत्यंशुः । प्रतिजन: । प्रतिराजा, इत्यादिकम्।
अंशु । जन । राजा। उष्ट्र। खेटक । अजिर। आर्द्रा । श्रवण । कृत्तिका । अर्ध । पुर। इत्यंश्वादयः ।।