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________________ ૩૬૭ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, उपसर्गात्, समासे इति चानुवर्तते। अन्वय:-समासे परेरुपसर्गाद् अभितोभाविमण्डलम् उत्तरपदम् अन्त उदात्त:। ___ अर्थ:-समासमात्रे परेरुपसर्गात् परम् अभितोभाविवाचि मण्डलशब्दश्चोत्तरपदम् अन्तोदात्तं भावति। ___उदा०-(अभितोभावि) परित: कूलं यस्य तत्-परिकूलम्। परितीरम् (बहुव्रीहिः)। परिगतं कूलमिति परिकूलम् (प्रादितत्पुरुषः)। परि कूलादिति परिकूलम् (अव्ययीभाव:)। एवमेव-परितीरम्। (मण्डलम्) परितो मण्डलं यस्य तत्-परिमण्डलम् (बहुव्रीहि:)। परिगतं मण्डलमिति परिमण्डलम् (प्रादितत्पुरुष:)। परि मण्डलादिति परिमण्डलम् (अव्ययीभाव:)। ___ “अभित इत्युभयतः। अभितो भावोऽस्यास्यास्तीति तदभितोभावि, यच्चैवंस्वभावं कूलादि तदभितोभाविग्रहणेन गृह्यते” (काशिका)। आर्यभाषा: अर्थ-(समासे) समासमात्र में (परे:) परि (उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (अभितोभावि) उभयतोभावीवाची शब्द और (मण्डलम्) मण्डल' (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा०-(अभितोभावी) परिकूलम् । जिसके सब ओर कूल (किनारा) है वह सरोवर (बहुव्रीहि)। परिकूलम् । सब ओर फैला हुआ किनारा (प्रादितत्पुरुषः)। परिकूलम् किनारे को छोड़कर (अव्ययीभाव)।। परितीरम् । जिसके सब ओर तीर घाट हैं वह सरोवर (बहुव्रीहि)। परितीरम् । सब ओर फैला हुआ तीर (प्रादितत्पुरुष)। परितीरम् । तीर को छोड़कर (अव्ययीभाव)। (मण्डल) परिमण्डलम् । जिसके सब ओर मण्डल (घेरा) है वह वन आदि (बहुव्रीहि)। परिमण्डलम् । सब ओर फैला हुआ मण्डल। (प्रादितत्पुरुषः)। परिमण्डलम् । मण्डल को छोड़कर (अव्ययीभाव)। सिद्धि-परिकूलम् । यहां परि और कूल शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस समास में परि-उपसर्ग से परि अभितोभावी (दोनों ओर होनेवाला) वाचक कूल-शब्द उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। समासमात्र के कथन से यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष और 'अपपरिबहिरञ्चव: पञ्चम्या:' (२।१।१२) से अव्ययीभाव समास भी होता है। ऐसे ही-परितीरम्, परिमण्डलम् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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