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________________ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः ३६५ अर्थ:-समासमात्रेऽन्त:-शब्दात् परम् वनमित्युत्तरपदम् अन्तोदात्तं भवति। उदा०-अन्तर्वनं यस्मिन् स:-अन्तर्वणो देश:। आर्यभाषा: अर्थ-(समासे) समासमात्र में (अन्तः) अन्तर् शब्द से परे (वनम्) वन-शब्द (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा-अन्तर्वणो देश: । वह देश कि जिसके अन्त: मध्य में वन है। अन्तर् शब्द स्वरादिगण में पठित होने से 'स्वरादिनिपातमव्ययम्' (१।१।३७) से अव्यय है। सिद्धि-अन्तर्वणः । यहां अन्तर् और वन शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस बहुव्रीहि समास में अन्तर्-शब्द से परे वन उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। प्रनिरन्त:शरेक्षुप्लक्षाम्रकार्घ्यखदिरपीयूक्षाभ्योऽसंज्ञायामपि (८।४।५) से वन-शब्द के नकार को णकार आदेश होता है। अन्तोदात्तम् (३८) अन्तश्च ।१८०। वि०-अन्त: ११ च अव्ययपदम् । अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, उपसर्गात्, समासे इति चानुवर्तते। अन्वय:-समासे उपसर्गाद् अन्तश्चोत्तरपदम् अन्त उदात्त: । अर्थ:-समासमात्रे उपसर्गात् परोऽन्त-शब्दश्चोत्तरपदम् अन्तोदात्तं भवति। उदा०-प्रगतोऽन्तो यस्य स:-प्रान्त: । परिगतोऽन्तो यस्य स:-पर्यन्तः । अथवा-प्रगतोऽन्त इति प्रान्त: । परितोऽन्त इति पर्यन्तः । आर्यभाषा: अर्थ-(समासे) समास मात्र में (उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (अन्तः) अन्त-शब्द (च) भी (उत्तरपदम्) उत्तरपद (अन्त उदात्तः) अन्तोदात्त होता है। उदा०-प्रान्तः । जिसका अन्त भाग प्रगत (प्रसृत) है वह प्रदेश। पर्यन्तः । जिसका अन्त भाग परिगत (परिसृत) है वह प्रदेश। अथवा-प्रगत: । प्रगत अन्त। पर्यन्तः । परिगत अन्त। सिद्धि-प्रान्तः । यहां प्र और अन्त शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस बहुव्रीहि समास में उपसर्ग से परे अन्त उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादि-समास भी है। ऐसे ही-पर्यन्तः।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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