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________________ ३६३ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः स:-बहुसूक्तो ग्रन्थः । बहवोऽध्याया यस्मिन् स:-बध्यायो ग्रन्थः । “गुणादिराकृतिगणो द्रष्टव्यः” (काशिका)। आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (बहो:) बहु-शब्द से परे (अवयवाः) अवयववाची (गुणादय:) गुणादि-शब्द (उत्तरपदम्) उत्तरपद में (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होते हैं। उदा०-(गुण) बहुगुणा रज्जुः । बहुत गुणों (लड़) वाली रस्सी। बहक्षरं पदम् । बहुत अच्छरोंवाला पद। बहुच्छन्दोमानं काव्यम् । बहुत छन्दोनिर्माणवाला काव्य। बहुसूक्तो ग्रन्थः । बहुत सूक्तोंवाला ग्रन्थ (ऋग्वेद)। बहध्यायो ग्रन्थः । बहुत अध्यायोंवाला ग्रन्थ (यजुर्वेद)। "गुणादि आकृतिगण हैं" (काशिका)। सिद्धि-बहुगुणा । यहां बहु और गुण शब्दों का अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस बहुव्रीहि समास में 'बहु' शब्द से परे अवयववाची गुण उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर का प्रतिषेध है। अत: 'बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम् (६।२।१) से बहु पूर्वपद को प्रकृतिस्वर है। बहु शब्द में 'बहि वृद्धौ' धातु से लंघिबंडोनलोपश्च' (उणा० १ ।२९) से उ-प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। ऐसे ही-बहक्षरम् आदि। अन्तोदात्तम् (३५) उपसर्गात् स्वाङ्गं ध्रुवमपशु।१७७। प०वि०-उपसर्गात् ५ ।१ स्वाङ्गम् १।१ ध्रुवम् १।१ अपर्यु ११ । स०-न पशु इति अपशु (नञ्तत्पुरुष:)। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, बहुव्रीहाविति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ उपसर्गाद् अपशु ध्रुवं स्वाङ्गम् उत्तरपदम् अन्त उदात्त:। अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे उपसर्गात् परं पशुवर्जितं ध्रुवं स्वाङ्गवाचि उत्तरपदम् अन्तोदात्तं भवति । उदा०-प्रगतं पृष्ठं यस्य :-प्रपृष्ठ: । प्रोदरः । प्रललाट: । आर्यभाषा: अर्थ- (बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (अपशु) पशु-शब्द को छोड़कर (ध्रुवम्) एकरूप (स्वाङ्गम्) स्वाङ्गवाची (उत्तरपदम्) उत्तरपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा०-प्रपृष्ठः । ऊपर को उठी हुई पीठवाला पुरुष (कुबड़ा)। प्रोदरः । आगे को उठे हुये उदर-पेटवाला पुरुष (पटला)। प्रललाट: । आगे को बढ़े हुये ललाटमाथेवाला पुरुष।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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