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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
३८३ (५) महामुख: । यहां महत् और मुख शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। महत् शब्द वर्तमाने पृषबृहन्महज्जगच्छतृवच्च' (उणा० २ १८५) से अति-प्रत्ययान्त निपातित है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। 'निष्ठोपमानादन्यतरस्याम् (६।२।१६९) से विकल्प से उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर प्राप्त था, उसका यह पूर्व प्रतिषेध है।
(६) स्थूलमुखः । यहां स्थूल और मुख शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। स्थूल शब्द स्थूल परिवहणे (चु०आ०) धातु से नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः' (३।१।१३४) से पचादि अच्' प्रत्यय है। यह प्रत्यय के चित् होने से चित:' (६।१ ।१६३) से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(७) मुष्टिमुख: । यहां मुष्टि और मुख शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। मुष्टि शब्द 'मुष स्तेये (क्रया०प०) धातु से 'क्तिचक्तौ च संज्ञायाम्' (३।३।१७४) से क्तिच्' प्रत्यय है। यह प्रत्यय के चित् होने से चित:' (६।१।१६३) से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। यहां पूर्ववत् पूर्वप्रतिषेध है।
(८) पृथुमुख: । यहां पृथु और मुख शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। पृथु शब्द में प्रथिमुदिभ्रस्जां सम्प्रसारणं सलोपश्च' (उणा० १।२८) से 'कु' प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(९) वत्समुख: । यहां वत्स और मुख शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। वत्स शब्द में वद व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से वृतृवदिवचिवसिहनिकमिकषिभ्य: सः' (उणा० ३।६२) से 'स' प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। यहां पूर्ववत् पूर्वप्रतिषेध है। अन्तोदात्तविकल्पः
(२७) निष्ठोपमानादन्यतरस्याम्।१६६ । प०वि०-निष्ठा-उपमानात् ५ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् ।
स०-उपमीयतेऽनेनेति उपमानं सिंहादिकम् । निष्ठा च उपमानं च एतयो: समाहारो-निष्ठोपमानम्, तस्मात्-निष्ठोपमानात् (समाहारद्वन्द्व:) ।
- अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, बहुव्रीहौ, मुखम्, स्वाङ्गमिति चानुवर्तते।
अन्वय:-बहुव्रीहौ निष्ठोपमानात् स्वाङ्ग मुखम् उत्तरपदम् अन्यतरस्याम् अन्त उदात्त:।