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________________ ३७७ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त इति चानुवर्तते । अन्वय:-बहुव्रीहाविदमेतत्तद्भ्यः क्रियागणने प्रथमपूरणयोरुत्तरपदम् अन्त उदात्त:। अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे इदमेतत्तद्भ्य: परं, क्रियागणने वर्तमान: प्रथमशब्द:, पूरणप्रत्ययान्तश्चोत्तरपदमन्तोदात्तं भवति। उदा०-(इदम्) इदं प्रथमं भोजनम्/गमनं यस्य स:-इदम्प्रथमः । (एतत्) एतत्प्रथमः । (तत्) तत्प्रथम: (प्रथम:)। (इदम्) इदं द्वितीयं भोजनम्/गमनं यस्य स:-इदन्द्वितीय: । इदन्तृतीयः । (एतत्) एतद्वितीय: । एतत्तृतीयः । (तत्) तद्वितीयः । तत्तृतीय: (पूरणम्) । आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (इदमेतत्तद्भ्यः) इदम्, एतत् और तत् शब्दों से परे (क्रियागणने) क्रिया की गणना अर्थ में विद्यमान (प्रथमपूरणयोः) प्रथम और पूरण-प्रत्ययान्त (उत्तरपदम्) उत्तरपद में (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा०-(इदम्) इदम्प्रथमः। यह प्रथम भोजन/गमन है जिसका वह पुरुष। (एतत्) एतत्प्रथमः । अर्थ पूर्ववत् है। (तत्) तत्प्रथम: वह प्रथम भोजन/गमन है जिसका वह पुरुष (प्रथम)। (इदम्) इदन्द्वितीयः । यह दूसरा भोजन/गमन है जिसका वह पुरुष। इदन्तृतीयः। यह तीसरा भोजन/गमन है जिसका वह पुरुष। (एतत्) एतद्वितीयः । अर्थ पूर्ववत् है। एतत्तृतीयः। अर्थ पूर्ववत् है। (तत्) तद्वितीयः । वह द्वितीय भोजन/गमन है जिसका वह पुरुष। तत्तृतीयः। वह तृतीय भोजन/गमन है जिसका वह पुरुष। सिद्धि-(१) इदम्प्रथमः। यहां इदम् और प्रथम शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इदम् शब्द से परे क्रिया की गणना अर्थ में विद्यमान प्रथम उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम्' (६।२।१) से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर प्राप्त था। ऐसे ही-एतत्प्रथमः, तत्प्रथमः । (२) इदन्द्वितीय: । यहां इदम् और द्वितीय शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से बहुव्रीहि समास में इदम् शब्द से परे क्रिया की गणना अर्थ में विद्यमान पूरण-प्रत्ययान्त द्वितीय' उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम् (६।१।२) से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर प्राप्त था। द्वितीय शब्द में द्वस्तीय:' (५।२।५४) से पुरण-अर्थ में 'तीय' प्रत्यय है। ऐसे ही-एतद्वितीयः, तद्वितीयः, इदन्ततीयः, एतत्तृतीयः, तत्तृतीयः । तृतीय' शब्द में त्रि' शब्द से त्रैः सम्प्रसारणं च' (५।२।५५) से 'तीय' प्रत्यय और त्रि' को सम्प्रसारण भी होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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