________________
३६०
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (१२) गोवृषः। यहां गो और वृष शब्दों का उपपदमति' (२।२।१९) से उपपद-तत्पुरुष समास है। वृष' शब्द में वृषु सेचने' (भ्वा०प०) धातु से वा०- 'कप्रकरणे मूलविभुजादीनामुपसंख्यानम् (३।२।५) से 'क' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-खरीवृष:
(१३) प्रवृष: । यहां प्र और वृष शब्दों का पूर्ववत् गतितत्पुरुष समास है। वृष' शब्द में वृषु सेचने (भ्वा०प०) धातु से 'इगुपधज्ञाप्रीकिर: कः' (३।१।१३५) से 'क' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही- 'हृष तुष्टौ' (दि०प०) धातु से-प्रहर्षः । अन्तोदात्तम्
(३) सूपमानात् क्तः।१४५। प०वि०-सु-उपमानात् ५ १ क्त: ११ ।
स०-उपमीयतेऽनेनेति उपमानं सिंहादिकम् । सुश्च उपमानं च एतयो: समाहार: सूपमानम्, तस्मात्-सूपमानात् (समाहारद्वन्द्वः)।
अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, तत्पुरुषे, अन्त इति चानुवर्तते । अन्वय:-तत्पुरुषे सूपमानात् क्त उत्तरपदम् अन्त उदात्त: ।
अर्थ:-तत्पुरुष समासे सु-शब्दाद् उपमानवाचिनश्च परं क्तान्तम् उत्तरपदमन्तोदात्तं भवति। ___ उदा०-(सुः) सुष्ठु कृतमिति सुकृतम्। सुभुक्तम्। सुपीतम्। (उपमानम्) वृकैरिवावलुप्तमिति वृकावलुप्तम्। शशकप्लुप्तम् । सिंहविनर्दितम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (सूपमानात्) सु-शब्द और उपमानवाची शब्द से परे (क्तः) क्तप्रत्ययान्त (उत्तरपदम्) उत्तरपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-(सु) सुकृतम्। सत्कारपूर्वक किया। सुभुक्तम् । सत्कारपूर्वक खाया। सुपीतम् । सत्कारपूर्वक पीया। (उपमान) वृकावलुप्तम् । भेड़ियों के समान लुप्त हुआ। शशकप्लुप्तम् । खरगोशों के समान उछला। सिंहविनर्दितम् । सिंहों की समान गर्जना की।
सिद्धि-(१) सुकृतम् । यहां सु और कृत शब्दों का 'कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से गति-तत्पुरुष समास है। कृत शब्द में डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से निष्ठा' (३।२।१०२) से 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से सु-शब्द से परे क्तान्त कृत उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। 'गतिरनन्तरः' (६।२।४९) से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर (आद्युदात्त) प्राप्त था। उसका यह अपवाद है। ऐसे ही-सुभुक्तम् । सुपीतम् ।