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________________ ३५० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (अप्राणिषष्ठ्याः) अप्राणीवाची षष्ठयन्त शब्द से परे (षट्) छ: (काण्डादीनि) काण्ड आदि शब्द (उत्तरपदादिः, उदात्त:) उत्तरपद में आधुदात्त होते हैं। __ उदा०-(काण्ड) दर्भकाण्डम् । डाभ का तणा। शरकाण्डम् । सरकंडे का तणा। (चीर) दर्भचीरम् । डाभ का खण्ड । कुशचीरम् । कुश (तृणविशेष) का खण्ड। (पलल) तिलपलेलम्। तिल का चोकर (भूसी)। (सूप) मुद्गसूपः । मूंग की दाळ। (शाक) मूलकशाकम् । मूळी का साग। (कूल) नदीकूलम् । नदी का तट। समुद्रकूलम् । सागर का तट। सिद्धि-दर्भकाण्डम् । यहां दर्भ और काण्ड शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में अप्राणीवाची षष्ठ्यन्त दर्भ शब्द से परे काण्ड उत्तरपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-शरकाण्डम् आदि। विशेष: चेलखेटकटुककाण्डं गर्हायाम्' (६ ।२।१२६) आदि से गहरे, उपमान, मिश्र और संज्ञा अर्थों में काण्ड आदि शब्दों को उत्तरपद में आधुदात्त स्वर का विधान किया गया है। इस सूत्र से गर्दा आदि अर्थो से अन्यत्र भी काण्ड आदि छ: शब्दों को उत्तरपद में आधुदात्त स्वर होता है। आधुदात्तम् (२६) कुण्डं वनम् ।१३६। प०वि०-कुण्डम् १।१ वनम् १।१। अनु०-उदात्तः, उत्तरपदादिः, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वयः-तत्पुरुषे वनं कुण्डम् उत्तरपदादिरुदात्त:। अर्थ:-तत्पुरुष समासे वनवाचि कुण्डमित्युत्तरपदम् आधुदात्तं भवति । उदा०-दर्भस्य कुण्डमिति दर्भकुण्डम् । दर्भवनमित्यर्थः । शरकुण्डम् । शरवणमित्यर्थः। आर्यभाषा अर्थ- (तत्पुरुष) तत्पुरुष समास में (वनम्) वनवाची (कुण्डम्) कुण्ड शब्द (उत्तरपदादिः, उदात्त:) उत्तरपद में आधुदात्त होता है। उदा०-दर्भकुण्डम् । डाभ का वन। शरकुण्डम् । सरकंडों का वन। सिद्धि-दर्भकुण्डम् । यहां दर्भ और कुण्ड शब्दों का षष्ठी (६।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वनवाची कुण्ड' शब्द को उत्तरपद में आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-शरकुण्डम् । ।। इति उत्तरपदायुदात्तप्रकरणम् ।।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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