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________________ २८६ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः । अन्वय:-नित्यार्थे क्ते च पूर्वपदमन्यतरस्यां प्रकृत्या। अर्थ:-नित्यार्थे समासे क्तान्ते शब्दे चोत्तरपदे पूर्वपदं विकल्पेन प्रकृतिस्वरं भवति। उदा०-नित्यं प्रहसित इति नित्यप्रहसित: । नित्यप्रहसित:। सततं प्रहसित इति सततर्ग्रहसित: । सततप्रहसित:। नित्यशब्दोऽयमाभीक्ष्ण्ये कूटस्थे चार्थेऽवर्तते, अत्र चाभीक्ष्ण्येऽर्थे गृह्यते, क्तस्य धातुना सह योगात्, धातोश्च क्रियावचनात्, क्रियायाश्च क्षणिकत्वात् कौटस्थ्यं नोपपद्यते। आर्यभाषा: अर्थ-(नित्ये) नित्य आभीक्ष्ण्यार्थक समास में (क्ते) क्त-प्रत्ययान्त शाब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। उदा०-नित्यप्रहसितः । नित्यप्रहसितः । सदा हंसनेवाला। सततप्रहसितः । सततप्रहसित: । अर्थ पूर्ववत् है। आभीक्ष्ण्य-पुन: पुन: होना। सिद्धि-नित्यप्रहसित: । यहां नित्य और प्रहसित शब्दों का काला:' (२।१।२८) से द्वितीयातत्पुरुष समास है। कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे (२।३।६) से द्वितीया विभक्ति होती है। नित्य शब्द में वा०-त्यबनेधुवे (४।२।१०३) से त्यप्' प्रत्यय है। प्रत्यय के पित् होने से यह अनुदात्तौ सुप्पितौ' (३।१।४) से अनुदात्त है और उपसर्गाश्चाभिवर्जम्' (फिट० ४।१३) से नि' शब्द आधुदात्त है। उदात्तादुनुदात्तस्य स्वरित:' (८।४।६५) से त्यप् को स्वरित होकर यह स्वरितान्त होता है। यह इस सूत्र से क्तान्त शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। विकल्प पक्ष में समासस्य' (६।१।२१७) से समास को अन्तोदात्त स्वर होता है-नित्यप्रहसित:। (२) सततप्रहसित: । यहां सतत और प्रहसित शब्दों का पूर्ववत् द्वितीया तत्पुरुष समास है। सतत शब्द में भाव अर्थ में क्त प्रत्यय है अत: यह 'थाथघक्ताजबित्रकाणाम् (६।२।१४३) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से क्तान्त शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। विकल्प पक्ष में 'समासस्य' (६।१।२१७) से समास को अन्तोदात्त स्वर होता है-सततप्रहसितः । प्रकृतिस्वरविकल्प: _ (६२) ग्रामः शिल्पिनि।६२। प०वि०-ग्राम: ११ शिल्पिनि ७१। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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