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________________ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः २५७ से प्रकृतिस्वर करने पर ईको यणचिं' (६।१।७५) से यण्- आदेश होने पर 'उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य' (८/२/४ ) से स्वरित स्वर होता है। विकल्प पक्ष में 'समासस्य' ( ६ 1१/२१७) से अन्तोदात्त स्वर होता है- बहरत्निः । (२) बहुमोस्यः। यहां बहु और कालवाची मास शब्दों का तद्धितार्थ में पूर्ववत् द्विगुसमास है। उससे 'द्विगोर्यप्' (५1१1८२ ) से भूत अर्थ में तथा वय: (आयु) अभिधेय में 'यप्' प्रत्यय है। 'बहु' शब्द इस सूत्र से द्विगुसमास में कालवाची मास शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। विकल्प पक्ष में पूर्ववत् अन्तोदात्त स्वर होता है - बहुमास्य: । (३) बहुकेपाल: । यहां बहु और कपाल शब्दों का तद्धितार्थ में पूर्ववत् द्विगुसमास है । 'बहु' शब्द पूर्ववत् अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से द्विगुसमास में कपाल शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्व से रहता है । विकल्प पक्ष में पूर्ववत् अन्तोदात्त स्वर होता है- बहुकपाल: । ऐसे ही- बहुभगालः, बहुभगाल: । बहु॑शरावः, बहुशरा॒वः । प्रकृतिस्वरविकल्पः (३१) ष्टिवितस्त्योश्च | ३१ | प०वि०-दिष्टि-वितस्त्योः ७ । २ च अव्ययपदम् । सo - द्विष्टिश्च वितस्तिश्च ते दिष्टिवितस्ती, तयो: - दिष्टिवितस्त्योः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । I अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, द्विगौ, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते । अन्वयः -द्विगौ दिष्टिवितस्त्योश्च पूर्वपदमन्यतरस्यां प्रकृत्या । अर्थ:-द्विगौ समासे दिष्टिवितस्त्योश्चोत्तरपदयोः पूर्वपदं विकल्पेन प्रकृतिस्वरं भवति । उदा०- ( दिष्टि ) पञ्च दिष्टयः प्रमाणमस्येति पञ्च॑दिष्टिः । पञ्चदिष्टि: । ( वितस्ति:) पञ्च वितस्तय: प्रमाणमस्येति पञ्चवितस्तिः । पञ्चवितस्तिः । आर्यभाषाः अर्थ- (द्विगौ) द्विगुसमास में (दिष्टिवितस्त्योः) दिष्टि और वितस्ति शब्द उत्तरपद होने पर (च) भी (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (अन्यतरस्याम्) विकल्प से ( प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। उदा०- - (दिष्टि) पञ्चदिष्टि: । पञ्चदिष्टि: । पांच दिष्टि प्रमाणवाला । दिष्टि = प्रादेश (अंगूठे के शिर से तर्जनी अंगुलि के शिर तक की दूरी का प्रमाणविशेष ) । प्राचीनकाल का एक मान जो अंगूठे की नोक से लेकर तर्जनी की नोक तक का होता था और नापने के काम
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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