________________
षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२४३ (२) अश्वस्वामी । यहां अश्व और स्वामिन् शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'अश्व' शब्द आधुदात्त है। यह इस सूत्र से स्वामिन्’ शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(३) धनेस्वामी। यहां धन और स्वामिन् शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'धन' शब्द आधुदात्त है। यह इस सूत्र से स्वामिन् ' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। प्रकृतिस्वर:
(१८) पत्यावैश्वर्ये ।१८। प०वि०-पत्यौ ७।१ ऐश्वर्ये ७।१। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वय:-ऐश्वर्ये तत्पुरुषे पत्यौ पूर्वपदं प्रकृत्या।
अर्थ:-ऐश्वर्यवाचिनि तत्पुरुष समासे पति-शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति।
उदा०-गृहस्य पति:-गृहपतिः । सेनाया: पति:-सेनापति: । नराणां पति:-नरपति: । धान्यानां पति:-धान्यपतिः ।
आर्यभाषा अर्थ-(एश्वर्ये) ऐश्वर्यवाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (पत्यौ) पति शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा०-गहपतिः। घर का ईश्वर (स्वामी)। सेनापतिः। सेना का ईश्वर । नरपतिः। नरों का ईश्वर । धान्यपति: । धान्यों का ईश्वर।
सिद्धि-(१) गृहपतिः। यहां गृह और पति शब्दों का 'षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। गेहे कः' (३।१।१४४) से गृह' शब्द प्रकृतिस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से ऐश्वर्यवाची तत्पुरुष समास में 'पति' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(२) सेनापतिः । यहां सेना और पति शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। सह इनेन वर्तते इति सेना (बहुव्रीहिः)। सेना शब्द 'बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम्' (६।२।१) से आधुदात्त है। यह इस सूत्र से ऐश्वर्यवाची तत्पुरुष समास में 'पति' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(३) नरपति: । यहां नर और पति शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। नर' शब्द नृ नये (क्रया०आ०) धातु से ऋदोर' (३।३।५७) से अप्-प्रत्ययान्त होने से