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________________ २४० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां 'व्याडि' शब्द में 'अत इन' (४।१।९५) से अपत्य अर्थ में 'इञ्' प्रत्यय है। यह इञ्-प्रत्ययान्त होने से नित्यादिनित्यम्' (६।१।१९१) से आधुदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-आपिशल्युपज्ञम् । (५) आद्योपक्रमम् । 'आद्य' यहां 'आदि' शब्द से दिगादिभ्यो यत्' (४।३।५४) से 'भव' अर्थ में यत्-प्रत्यय है। अत: यह तित् स्वरितम् (६।१।१७९) से स्वरितान्त है। यह इस सूत्र से 'उपक्रम' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (६) दर्शनीयोपक्रमम् । यहां दर्शनीय' शब्द में तव्यत्तव्यानीयरः' (३।१।९६) से अनीयर् प्रत्यय है। अत: यह उपोत्तमं रिति (६।१।२११) से उपोत्तम-उदात्त है। यह इस सूत्र से उपक्रम' उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (७) सुकुमारोप॑क्रमम् । 'सुकुमार' शब्द नसुभ्याम् (६।२।१७२) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से उपक्रम' उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (८) नन्दोपक्रमम् । नन्द' शब्द में नन्दिग्राहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः' (३।१।१३४) से 'अच्' प्रत्यय है। अत: यह चित:' (६।१।१५८) से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से उपक्रम' उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (९) इषुच्छायम् । इषु' शब्द में 'इषे: किच्च' (उणा० १।१३) से 'उ' प्रत्यय है। यहां 'धान्ये नित्' (उणा० १।९) से 'नित्' की अनुवृत्ति मानकर 'उ' प्रत्यय के नित् होने से नित्यादिनित्यम्' (६।१।१९१) से यह आधुदात्त है। इस सूत्र से यह 'छाया' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। छाया बाहुल्ये' (२।४।२२) से नपुंसकलिङ्ग होता है। (१०) धनुश्छायम् । 'धनुष्' शब्द नविषयस्यानिसन्तस्य' (फि० २६) से आधुदात्त है। इस सूत्र से यह 'छाया' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। प्रकृतिस्वरः (१५) सुखप्रिययोर्हिते।१५। प०वि०-सुख-प्रिययो: ७।२ हिते ७।१। स०-सुखं च प्रियश्च तौ सुखप्रियौ, तयो:-सुखप्रिययोः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वय:-हिते तत्पुरुषे समासे सुखप्रिययो: पूर्वपदं प्रकृत्या । अर्थ:-हितवाचिनि तत्पुरुष समासे सुखप्रिययोरुत्तरपदयोः पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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