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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स०-गाधश्च लवणं च ते गाधलवणे, तयो:-गाधलवणयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते। अन्वयः-प्रमाणे तत्पुरुषे गाधलवणयो: पूर्वपदं प्रकृत्या।
अर्थ:-प्रमाणवाचिनि तत्पुरुष समासे गाधलवणयोरुत्तरपदयो: परत: पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति।
उदा०-(गाध:) शम्बस्य गाधम्-शम्बंगाधम् उदकम्। अरित्रस्य गाधम्-अरित्रंगाधम् उदकम् । शम्बप्रमाणम्, अरित्रप्रमाणं चेत्यर्थ: । (लवणम्) गोर्लवणम् गोलवणम् । अश्वस्य लवणम्-अवलवणम् । यावल्लवणं गवेऽश्वाय च दीयते तावदित्यर्थः।
आर्यभाषा: अर्थ-(प्रमाणे) प्रमाणवाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (गाधलवणयोः) गाध और लवण शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
__उदा०-शम्बंगाधम् उदकम् । शम्ब-भूखण्ड भर प्रमाण का जल। अरित्रंगाधम् उदकम् । अरित्र-नौका के दण्ड (चप्पू) प्रमाण का जल। गोलवणम् । जितना गौ को दिया जाता है उतना लवण (नमक)। अश्वलवणम् । जितना घोड़े को दिया जाता है उतना लवण।
सिद्धि-(१) शम्बंगाधम् । शम्ब+डस्+गाध+सु। शम्बगाध+सु। शम्बगाधम्।
यहां प्रमाणवाची शम्ब और गाध शब्दों का षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से गाध शब्द उत्तरपद होने पर शम्ब पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'शमेवन (उणा० ४।९४) से शम्ब शब्द वन्-प्रत्ययान्त होने से नित्स्वर से आधुदात्त है।
(२) अरित्रगाधम् । यहां प्रमाणवाची अरित्र और गाध शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से गाध शब्द उत्तरपद होने पर अरित्र' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'अर्तिलूधू०' (३।२।१८४) से 'अरित्र' शब्द इत्र-प्रत्ययान्त होने से प्रत्ययस्वर से मध्योदात्त है।
(३) गोलवणम् । यहां प्रमाणवाची गो और लवण शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से लवण शब्द उत्तरपद होने पर 'गो' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'गमे?:' (उणा० १।१।५१) से डो-प्रत्ययान्त गो' शब्द प्रत्ययस्वर से उदात्त है।
(४) अश्वलवणम् । यहां प्रमाणवाची अश्व और लवण शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से लवण शब्द उत्तरपद होने पर 'अश्व' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'अशुघुषिलटि०' (उणा० २।६७) से 'अश्व' शब्द क्वन्-प्रत्ययान्त होने से नित्स्वर से आधुदात्त है।