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________________ २२६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (११) न्यग्रोधपरिमण्डला। यहां न्यग्रोध और परिमण्डल शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारयतत्पुरुष समास है। इसका उपमानवाची न्यग्रोध' पूर्वपद नन्दिग्रहिपचादिभ्यो।' (३।१।१३४) से अच्-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। न्यग्रोधस्य च केवलस्य (७।३।५) इस सूत्रोक्त निपातन से 'रुह्' धातु के हकार को धकार आदेश (न्यग् रोहतीति न्यग्रोध:) और मध्योदात्त होता है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है। (१२) दूर्वाकाण्डश्यामा । यहां दूर्वाकाण्ड और श्यामा शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारयतत्पुरुष समास है। इसके उपमानवाची 'दूर्वाकाण्ड' पूर्वपद में षष्ठीतत्पुरुष समास होने से समासस्य' (६।१।२१७) से अन्तोदात्त है-दूर्वाया: काण्डम्- दूर्वाकाण्डम् । इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-शरकाण्डगौरी। (१३) अब्राह्मण: । नञ्+सु+ब्राह्मण+सु। अ+ब्राह्मण+अब्राह्मण+सु । अब्राह्मणः ! यहां न और ब्राह्मण शब्दों का नत्र' (२०१६) से नञ् तत्पुरुष समास है। इस का अव्यय नन्' पूर्वपद निपाता आधुदात्ता:' (फिट० ४।१२) से आधुदात्त है। यह इस सूत्र से तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-अवृषलः । (१४) कुब्राह्मणः । यहां कु और ब्राह्मण शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-कुवृषलः । (१५) निष्कौशाम्बिः । यहां निस् और कौशाम्बी शब्दों का पूर्ववत् प्रादि-तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-निर्वाणिसिः । (१६) अतिखट्व: । यहां अति और खद्वा शब्दों का पूर्ववत् प्रादि-तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-अर्तिमाल: । (१७) मुहूर्तसुखम् । मुहूर्त+अम्+सुख+सु । मुहूर्तसुख+सु। मुहूर्तसुखम्।। यहां मुहूर्त और सुख शब्दों का 'अत्यन्तसंयोगे च' (२११।२९) से द्वितीयातत्पुरुष समास है। इसका द्वितीयान्त 'मुहूर्त' शब्द पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् (६।३।१०८) से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (१८) सर्वरात्र कल्याणी। यहां सर्वरात्र और कल्याण शब्दों का पूर्ववत् द्वितीया तत्पुरुष समास है। इसका द्वितीयान्त सर्वरात्र' शब्द 'अह:सर्वैकदेश०' (५।४।८७) से समासान्त अच्-प्रत्ययान्त होने से अन्दोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-सर्वरात्रशोभना। (१९) भोज्योष्णम् । यहां भोज्य और उष्ण शब्दों का कृत्यतुल्याख्या अजात्या' (२।१।६८) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इसके 'भोज्यम्' पूर्वपद ऋहलोर्ण्यत् (३।१।२४) से ण्यत्-प्रत्ययान्त होने से अन्तस्वरित है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (२०) पानीयशीतम् । यहां पानीय और शीत शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इसके पानीयम्' पूर्वपद के तव्यत्तव्यानीयरः' (३।१।९६) से अनीयर्-प्रत्ययान्त होने से 'उपोत्तमं रिति' (६।१ ।२११) से इसका ईकार उदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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