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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
सर्वरा॒त्रशोभना। (कृत्यान्तम्) भोज्यं च तद् उष्णम् - भोज्यो॑ष्णम् । पा॒नीय॑शीतम्।
ह॒र॒णीय॑चूर्णम् ।
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आर्यभाषा: अर्थ - (तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में (तुल्यार्थ० कृत्याः ) तुल्यार्थक, तृतीयान्त, सप्तम्यन्त, उपमानवाची, अव्यय, द्वितीयान्त और कृत्यप्रत्ययान्त (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा० - (तुल्यार्थ ) तुल्येश्वेत: । समान श्वेत (सफेद) । तुल्येलोहितः । समान लोहित (लाल) । तुल्येमहान् । समान महान् (पूज्य)। सदृक्च्छ्वेतैः । स॒दृग्लोहितः । स॒दृग्र्महान् । अर्थ पूर्ववत् है । सदृशश्वेतः । स॒दृशलोहितः । स॒द॒शम॑हान् । अर्थ पूर्ववत् है। (तृतीया) शङ्कुलार्खण्डः । शङ्कुला=सरोता से किया हुआ खण्ड (टुकड़ा) । करिकोणः । किरि=बाण से किया गया काणा । (सप्तमी ) अक्षशौण्ड: । अक्ष= = द्यूतक्रीड़ा में चतुर । पानशौण्ड: 1 सुरापान में चतुर । ( उपमानवाची) श॒स्त्रीश्यमा । शस्त्री = बर्छा के समान श्यामवर्णवाली । कुमुदश्यैनी। कुमुद= कमल के समान श्वेत वर्णवाली | हंसर्गद्गदा। हंस के समान गद्गद्=वाक्स्खलनवाली । न्यो॒ग्रोध॑परिमण्डला । न्यग्रोध-बड़ के समान परिमण्डल (घेरा) वाली। दूर्वाक॒ण्डश्या॑मा । दूर्वा = दूब के काण्ड = शाखा के समान श्यामवर्णवाली । शरकाण्डगौरी । शरकाण्ड=सरकण्डे के समान गौर वर्णवाली। (अव्यय) अब्रोह्मण: । जो ब्राह्मण नहीं है। अवृर्षलः । जो वृषल= नीच नहीं है । कुब्रह्मणः । कुत्सित= निन्दित ब्राह्मण । कुर्वृषलः कुत्सित वृषल-नीच । निष्कौशाम्बि: । कौशाम्बी नगरी से निकला हुआ। निर्वारणसिः । वाराणसी नगरी से निकला हुआ। अति॑िखट्वः । खट्वा = खाट का अतिक्रमण करनेवाला । अर्तिमाल: । माला का अतिक्रमण करनेवाला । (द्वितीया ) मुहूर्त्तसुखम् । मुहूर्त भर को सुख। मुहूर्त्तर्रमणीयम् । मुहूर्त भर को रमणीय (सुन्दर) । सर्वरा॒त्रक॑ल्याणी । समस्त रात्रि सुखदायिनी । सर्वरा॒त्रशोभना । समस्त रात्रि सोहणी । (कृत्यान्त) भोज्योष्णम् । उष्ण भोज्य पदार्थ। भा॒ज्य॑लवणम्। नमकीन भोज्य पदार्थ । पानीय॑शीतम्। पीने योग्य शीतल पदार्थ । हर॒णीय॑चूर्णम् । आहार के योग्य चूर्ण |
सिद्धि०- (१) तुल्येश्वेतः । तुल्य+सु+श्वेत+सु। तुल्यश्वेत+सु। तुल्यश्वेतः ।
यहां तुल्य और श्वेत शब्दों का 'कृत्यतुल्याख्या अजात्या' (१1१/६७) से कर्मधारयतत्पुरुष समास है। इसके पूर्वपद तुल्य' शब्द में 'नौवयोधर्म०' (४|४|११ ) से 'यत्' प्रत्यय है। 'यतोऽनाव:' (६।१।२०७ ) से 'तुल्य' शब्द आद्युदात्त है। इस सूत्र से वह तत्पुरुष समा के पूर्ववपद में प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही तुल्येलोहितः, तुल्य॑महान् ।
(२) स॒दृक्च्छ्वैत:। यहां तुल्यार्थक 'सदृक्' शब्द और 'श्वेत' शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारयतत्पुरुष समास है । त्यदादिषु दृशोऽनालोचने कञ् च' (३ । २ । ६० ) से सदृक्' शब्द क्विप्-प्रत्ययान्त है। दृग्दृशवतुषु' (६ । ३ । १८८ ) से समान को स-भाव होता है । 'गतिकारकोपपदात् कृत्' (६ 1३1८८ ) से 'सदृक्' शब्द अन्तोदात्त है । इस सूत्र