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________________ २१० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- (जुष्टम्) जुष्टं देवानाम्। (अर्पितम्) अर्पित पितॄणाम् । आर्यभाषा: अर्थ-(मन्त्रे) मन्त्र विषय में (निष्ठा) निष्ठा-प्रत्ययान्त (जुष्टार्पित) जुष्ट और अर्पित शब्द (नित्यम्) सदा (अदिः, उदात्त:) आदि उदात्त होते हैं। उदा०-जुष्टं देवानाम् । देवों की सेवा करना। अर्पितं पितॄणाम् । पितरजनों को अर्पण करना। सिद्धि-जुष्टम् और अर्पितम् शब्दों की सिद्धि पूर्ववत् है। यहां मन्त्र विषय में इन्हें नित्य आधुदात्त स्वर विधान किया गया है। आधुदात्त: (५४) युष्मदस्मदोर्डसि।२०८/ प०वि०-युष्मदस्मदो: ६।२ ङसि ७ ।१ । स०-युष्मच्च अस्मच्च तौ युष्मदस्मदौ, तयो:-युष्मदस्मदो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-उदात्त:, आदिरिति चानुवर्तते । अन्वय:-ङसि युष्मदस्मदोरादिरुदात्त:। अर्थ:-ङसि प्रत्यये परतो युष्मदस्मदो: शब्दयोरादिरुदात्तो भवति। उदा०-(युष्मद्) तव स्वम्। (अस्मद्) मम स्वम् । आर्यभाषा: अर्थ-(डसि) डस् प्रत्यय परे होने पर (युष्मदस्मदो:) युष्मद् और अस्मद् शब्दों को (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है। उदा०-(युष्मद्) तवं स्वम् । तेरा धन। (अस्मद्) मम स्वम् । मेरा धन। सिद्धि-(१) तव । युष्मद् डस् । युष्मद्+अश् । तव अद्+अ। तव+अ। तव। यहां युष्मद् शब्द से ‘डस्' प्रत्यय है। युष्मदस्मद्भ्यां ङसोऽश्' (७।१।२७) से 'डस्' के स्थान में 'अश्' आदेश, 'तवममौ ङसि' (७।२।९६) से 'युष्मद्' के म-पर्यन्त के स्थान में 'तव' आदेश शेषे लोप:' (७।२।९०) 'अद्' भाग का लोप और 'अतो गुणे' (६।१।९५) से पररूप एकादेश होता है। इस सूत्र से युष्मद् (तव) शब्द डस् प्रत्यय परे होने पर आधुदात्त होता है। प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त प्राप्त था। (२) मम। 'अस्मद्' शब्द से 'डस्' प्रत्यय करने पर समस्त कार्य पूर्ववत् है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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