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________________ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः १६५ यहां त्रिभी भये (जु०प०) धातु से लट्' प्रत्यय है। 'श्लौ' (६ ।१ ।१०) से 'भी' धातु को द्वित्व होकर उभे अभ्यस्ताम् (६।११५) से इसकी अभ्यस्त संज्ञा होती है। इस अभ्यस्त 'भी' धातु को पित्, ल-सार्वधातुक तिप्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से 'तिप्' प्रत्यय से पूर्ववर्ती अच् उदात्त होता है। ह्रस्व:' (७।४।५९) से अभ्यास को ह्रस्व, 'अभ्यासे चर्च (८।४।५३) से अभ्यास के भकार को जश् बकार होता है। सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७१३ १८४) से इगन्त अंग को गुण होता है। (२) जिहेति । ह्री+लट् । ह्री+तिम् । ह्री+शप्+ति। ह्री+o+ति। ह्री-ही+ति। झि+ही+ति । जिह्वे+ति । जिह्वेति। यहां ही लज्जायाम् (जु०प०) धातु से लट् प्रत्यय है। श्लौ' (६।१।१०) से ही' को द्वित्व, हलादि: शेषः' (७।४।६०) से ही' शेष, हस्व:' ७।४।५९) से ह्रस्व हि' कुहोश्चः' (७।४।६२) से हकार को कवर्ग झकार और 'अभ्यासे चर्च (८१४१५३) से झकार को जश् जकार होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है। (३) बिभर्ति। भ+लट् । भृ+तिप् । भृ+शप्+ति । भृ+० ति । भू-भृ+ति । भि-भर+ति। बि-भर्+ति । बिभर्ति। यहां डुभृञ् धारणपोषणयोः' (जु उ०) धातु से लट्' प्रत्यय है। 'भृञामित् (७।४।७६) से अभ्यास को इत्व होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है। (४) जुहोति । हु+लट् । हु+तिप्। हु+शप्+ति । हु+o+ति । हु-हु+ति । झु-हु+ति। जु-हो+ति। जुहोति। यहां हु दानादनयोः, आदाने चेत्येके (जु०प०) धातु से लट्' प्रत्यय है। कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास के हकार को चवर्ग झकार और 'अभ्यासे चर्च (८।४।५३) से झकार को जश् जकार होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है। (५) ममत्तु'। मद्+लोट् । मद्+तिम् । मद्+श्यन्+ति। मद्+o+ति । मद्-मद्+तु। म-मद्+तु। ममत्तु। यहां 'मदी हर्षे (दि०प०) धातु से 'लोट्' प्रत्यय है। बहुलं छन्दसि' (२।४।७३) से छन्द में बहुलवचन से 'श्यन्' को 'श्लु' होता है। श्लौ' (६।१।१०) से मद् धातु को द्वित्व और 'एरुः' (३।४।८६) से तिप्' के इकार को उकार आदेश होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है। (६) जजनत् । जन्+लेट्। जन्+तिप्। जन्+श्यन्+ति। जन्+० अट्+ति। जन्-जन्+अ+त् । ज+जन्+अ+त् । जजनत् । यहां जनी प्रादुभावें' (दि०आ०) धातु से 'लेट्' प्रत्यय है। 'बहुलं छन्दसि (२।४।७३) से छन्द में बहुल-वचन से 'श्यन्' विकरण प्रत्यय को श्लु' होकर श्लौं'
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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