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________________ १०६ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अक:) अक् वर्ण से उत्तर (सवर्णे) सवर्ण (अचि) अच् वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (दीर्घ:) दीर्घरूप (एक:) एकादेश होता है। उदा०-दण्डानम् । दण्ड का अग्रभाग (ठोरा)। दधीन्द्रः । दधि-दही का स्वामी। मधूदके। मधु शहद और उदक जल। होतृश्यः। होता का ऋश्य-सफेद पैरोंवाला बारहसिंघा। सिद्धि-(१) दण्डानम् । दण्ड+अग्रम् । दण्डानम् । यहां दण्ड के अक् (अ) से उत्तर सवर्ण अच् (अ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से दीर्घरूप (आ) एकादेश होता है। (२) दधीन्द्रः । दधि+इन्द्रः । दधीन्द्रः । यहां दधि के अक् (इ) से उत्तर सवर्ण अच् (इ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से दीर्घरूप (ई) एकादेश होता है। (३) मधूदके । मधु+उदकम् । मधूदके। यहां मधु के अक् (उ) से उत्तर सवर्ण अच् (उ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से दीर्घरूप (ऊ) एकादेश होता है। (४) होतृश्य: । होतृ+ऋश्य: । होतृश्यः । यहां होतृ के अक् (ऋ) से उत्तर सवर्ण अच् (ऋ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से दीर्घरूप (ऋ) एकादेश होता है। तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम्' (१।१।९) से अकार आदि वर्गों की परस्पर सवर्ण संज्ञा होती है। पूर्वसवर्ण-एकादेशः (३०) प्रथमयोः पूर्वसवर्णः ।१०१। प०वि०-प्रथमयो: ७।२ पूर्वसवर्ण: १।१। स०-प्रथमा च प्रथमा च ते, प्रथमे, तयो:-प्रथमयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। पूर्वस्य सवर्ण: पूर्वसवर्ण: (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-संहितायाम्, अचि, एक:, पूर्वपरयोः, अकः, दीर्घ इति चानुवर्तते । __ अन्वयः-संहितायाम् अक: प्रथमयोरचि पूर्वपरयो: पूर्वसवर्णो दीर्घ एक: ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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