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________________ १० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् प्रत्यय हुआ है, प्रकृति और प्रत्यय दोनों स्वर प्राप्त हैं, सो न हों, किन्तु प्रकृतिस्वर को बाध के प्रत्यय का आधुदात्त स्वर होता है। (८) षड्ज आदि सात स्वर गान्धर्ववेद में षड्ज, ऋषभ, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद इन सात स्वरों का उल्लेख है। नारदीय शिक्षा में इन षड्ज आदि स्वरों के उच्चारण का मयूर अदि की उपमा से सुन्दर वर्णन किया है षड्जं वदति मयूरो गावो रम्भन्ति चर्षभम् । अजाविके तु गान्धारं क्रौञ्चो वदति मध्यमम् ।। पुष्पसाधारणे काले कोकिला वक्ति पञ्चमम् । अश्वस्तु धैवतं वति निषादं वक्ति कुञ्जरः।। (ना०शि० १।५।३-४) अर्थ-मोर षड्ज स्वर बोलता है। गौवें ऋषभ स्वर में रांभती हैं। भेड़ और बकरी गान्धार स्वर में मिमाती हैं । क्रौञ्च पक्षी मध्यम स्वर में कूजता है। पुष्प-साधारण अर्थात् वसन्त ऋतु में कोयल पञ्चम स्वर में कूकती है। घोड़ा धैवत स्वर में हिनहिनाता है और कुञ्जर हाथी निषाद स्वर में चिंघाड़ता है। नारदीय शिक्षा के इस लेख से प्रकट होता है कि संगीत-विद्या के ये षड्ज आदि स्वर ऊपर लिखित मयूर आदि पशु-पक्षियों के शब्दो के अध्ययन से संगीतशास्त्र में ग्रहण करके विकसित किये गये हैं। (६) षड्ज आदि का उदात्त आदि में अन्तर्भाव-.. गान्धर्ववेद में जिन षड्ज आदि स्वरों का उपदेश किया गया है वे ही वैदिक संहिताओं में उदात्त आदि स्वरों के नाम से कहे गये हैं। जैसा कि पणिनि शिक्षा में लिखा है उदात्ते निषादगान्धारावनुदात्त ऋषभधैवतौ । स्वरितप्रभवा ह्येते षड्जमध्यमपञ्चमा:।। (पा०शि० पृ० १२) अर्थ-षड्ज आदि सात स्वरों का उदात्त आदि तीन स्वरों में अन्तर्भाव हो जाता है। निषाद और गान्धार उदात्त स्वर हैं। ऋषभ और धैवत अनुदात्त स्वर हैं। षड्ज, मध्यम और पञ्चम स्वर स्वरित स्वर से उत्पन्न हुये हैं। इन उदात्त आदि स्वरों का शिक्षा वेदाङ्गविषयक याज्ञवल्क्य-शिक्षा आदि ग्रन्थों के अध्ययन से यथावत् परिज्ञान प्राप्त करें। -सुदर्शनदेव आचार्य, संस्कृत सेवा संस्थान १५।३।९९ ई० ७७६/३४, हरिसिंह कालोनी, रोहतक (हरयाणा)
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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