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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (७।३।८४) से भि' इगन्त अंग को गुण (भे) होता है। इस सूत्र से यकारादि प्रत्यय परे होने पर एच् (ए) के स्थान में अय् आदेश निपातित है। (२) प्रवय्या । प्र+वी+यत् । प्र+वे+य। वे+व् अय+य । प्रवय्य+टाप् । प्रवय्या+सु। प्रवय्या। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक वी गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यसनखादनेषु' (अदा०प०) धातु से 'अचो यत्' (३।१।९७) से यत्' प्रत्यय है। 'वी' धातु को पूर्ववत् गुण होकर इस सूत्र से यकारादि प्रत्यय परे होने पर एच् (ए) के स्थान में 'अय्' आदेश निपातित है। यह शब्द स्त्रीलिङ् में ही निपातित है। वत्सतरी प्रवय्या। गर्भ-ग्रहण करने योग्य बछड़ी। एकादेश-अधिकार: (१३) एकः पूर्वपरयोः।८४। प०वि०-एक: १।१ पूर्व-परयो: ६ ।२। स०-पूर्वश्च परश्च तौ पूर्वपरौ, तयो:-पूर्वपरयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-संहितायाम् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-संहितायां पूर्वपरयोरेकः । अर्थ:-संहितायां विषये पूर्वपरयोः स्थाने एक आदेशो भवति, इत्यधिकारोऽयम्, 'ऋत उत्' (६।१ ।१०७) इति यावत् । यथा वक्ष्यति-'आद्गुण:' (६।१।८४) इति । तत्रावर्णादचि परत: पूर्वपरयो: स्थाने गुणरूप एकादेशो भवति । उदा०-खट्वेन्द्रः, मालेन्द्रः। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पूर्वपरयो:) पूर्व और पर वर्गों के स्थान में (एक:) एक वर्णरूप आदेश होता है। इसका 'ऋत उत्' (६।१।१७७) तक अधिकार है। जैसे पाणिनि मुनि कहेंगे- 'आद्गुणः' (६।११८४)। वहां अवर्ण से अच् परे होने पर पूर्व और पर वर्गों के स्थान में गुण रूप एक-आदेश होता है। उदा०-खट्वेन्द्रः । खाट का स्वामी। मालेन्द्रः। माला का स्वामी। सिद्धि-खट्वेन्द्र: । खट्वा+इन्द्र। खट्व्-ए-न्द्रः। खट्वेन्द्रः । यहां 'आद्गुणः' (६।१।८४) से पूर्ववर्ती खट्वा के आकार और परवर्ती इन्द्र के इकार इन दोनों के स्थान में गुण रूप एकार आदेश होता है। ऐसे ही-मालेन्द्रः।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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