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________________ ८७ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः अनु०-संहितायाम्, अचि इति चानुवर्तते । अन्वय:-संहितामचि एचोऽयवायाव: अर्थ:-संहितायां विषयेऽचि परत एच: स्थाने यथासंख्यम् अयवायाव आदेशा भवन्ति । उदाहरणम्एच् अयादयः प्रयोग: भाषार्थ (१) ए अय् चे+अनम् चयनम् चुनना। (२) ओ अव् लो+अनम् लवनम् काटना। ऐ आय चै+अक: चायक: चुननेवाला । (४) औ आव् लौ+अक: लावक: काटनेवाला। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि विषय में (अचि) अच् वर्ण परे होने पर (एच:) एच-ए, ओ, ऐ, औ के स्थान में यथासंख्य (अयवायाव:) अय, अव्, आय, आव् आदेश होते हैं। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में देख लेवें। सिद्धि-(१) चयनम् । चि+ल्युट् । चि+यु। चे+अन । च् अय्+अन । चयन+सु । चयनम्। यहां चिञ् चयने' (स्वा०उ०) धातु से 'ल्युट च' (३।३ ।११५) से भाव अर्थ में ल्युट् प्रत्यय है। सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से इगन्त अंग (चि) को गुण होता है। इस सूत्र से संहिता-विषय में अच् वर्ण परे होने पर एच् (ए) के स्थान में 'अय्' आदेश होता है। ऐसे ही-के+एते-कयेते। ये+एते ययेते।। (२) लवनम् । लू+ल्युट् । लू+यु। लो+अन । ल अव्+अन । लवन+सु । लवनम् । यहां लू छेदने (क्रया उ०) धातु से पूर्ववत् ल्युट् प्रत्यय है। पूर्ववत् 'लू' को गुण होकर इस सूत्र से एच् (ओ) के स्थान में 'अव्' आदेश होता है। (३) चायक: । चि+ण्वुल। चि+वु। चै+अक। च् आय्+अक। चायक+सु । चायकः । यहां चिञ् चयने' (स्वा०उ०) धातु से 'वुल्तृचौं' (३।१।१३३) से कर्ता अर्थ में 'ण्वुल्' प्रत्यय है। युवोरनाकौ' (७।१।१) से 'वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। 'अचो णिति' (७।२।११५) से अजन्त अंग चि' को वृद्धि (ए) होती है। इस सूत्र से एच् (ए) के स्थान में 'आय' आदेश होता है। लावकः । लू+ण्वुल। लू+वू । लौ+अक। ल आव्+अक। लावक+सु। लावकः । यहां लूञ् छेदने' (क्रया०उ०) धातु से पूर्ववत् 'वुल्' प्रत्यय है। इस सूत्र से एच (औ) के स्थान में आव् आदेश होता है। ऐसे ही-वायौ+अवरुणद्धि-वायाववरुणद्धि । वह वायु में रोकता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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