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पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(छ) कडकर जवार आदि की बढ़िया कुट्टी (सानी) को जो प्राप्त करने योग्य है वह-कडकरीय गौ (बैल)। (यत्) कडकर्य गौ (बैल)। कडकर्य का अपभ्रंश लोक में 'डांगर' शब्द प्रसिद्ध है। (छ:) दक्षिणा को जो प्राप्त करने योग्य है वह-दक्षिणीय भिक्षु। (यत्) दक्षिण्य ब्राह्मण (विद्वान्)।
सिद्धि-(१) कडकरीयः । कडकर+अम्+छः । कडकर+ईय । कडकरीय+सु। कडकरीयः।
यहां द्वितीया-समर्थ कडकर' शब्द से अर्हति अर्थ में इस सूत्र से छ' प्रत्यय है। 'आयनेयः' (७।१।२) से 'छ्' के स्थान में 'ईय्' आदेश होता है। ऐसे ही दक्षिणा' शब्द से-दक्षिणीयः ।
(२) कडकर्यः। यहां द्वितीया-समर्थ कडकर' शब्द से अर्हति अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है। 'यस्येति च(६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही दक्षिणा' शब्द से-दक्षिण्यः।।
विशेष: कंडकरदक्षिणात् यहां 'अल्पातरम्' (२।२।३४) से द्वन्द्वसमास में दक्षिणा' शब्द का पूर्वीनपात होना चाहिये किन्तु लक्षण-व्यभिचार होने से यहां छ और यत् प्रत्यय की यथासंख्यविधि नहीं होती है।
छ:+यत्
(८) स्थालीबिलात्।६६। वि०-स्थालीबिलात् ५।१।
स०-स्थाल्या बिलम् इति स्थालीबिलम्, तस्मात्-स्थालीबिलात् (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-तत्, अर्हति, यत्, छ:, च इति चानुवर्तते । अन्वय:-तत् स्थालीबिलाद् अर्हति छो यच्च ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीया-समर्थात् स्थालीबिलशब्दात् प्रातिपदिकाद् अर्हतीत्यस्मिन्नर्थे छो यच्च प्रत्ययो भवति।
उदा०-(छ:) स्थालीबिलमर्हन्ति-स्थालीबिलीयास्तण्डुला: । (यत्) स्थालीबिल्यास्तण्डुला: । पाकयोग्या इत्यर्थः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) द्वितीया-समर्थ (स्थालीबिलात्) स्थालीबिल प्रातिपदिक से (अर्हति) प्राप्त कर सकता है, अर्थ में (छ:) छ (च) और (यत्) यत् प्रत्यय होते हैं।
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