________________
४
%
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदाo- (पूरण:) द्वितीयमस्मिन् वृद्धिर्वाऽऽयो वा लाभो वा शुल्को वा उपदा वा दीयते-द्वितीयिकः । तृतीयिकः । पञ्चमिक:। सप्तमिकः । (अर्धम्) अर्धमस्मिन् वृद्धिर्वाऽऽयो वा लाभो वा शुल्को वा उपदा वा दीयते-अर्धिक: । अर्धशब्दो रूपकार्धस्य रूढिर्वतते।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-समर्थ (पूरणार्धात्) पूरण-प्रत्ययान्त और अर्ध प्रातिपदिक से (अस्मिन्) सप्तमी-अर्थ में (ठन्) ठन् प्रत्यय होता है (वृद्ध्यायलाभशुल्कोपदा दीयते) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह वृद्धि, आय, लाभ, शुल्क और उपदा रूप में दिया जाता हो।
__ उदा०-(पूरण) द्वितीय दूसरा इस व्यवहार में वृद्धि, आय, लाभ, शुल्क और उपदा दिया जाता है यह-द्वितीयिक । तृतीय-तीसरा इस व्यवहार में वृद्धि-आदि दिया जाता है यह-तृतीयिक। पञ्चम पांचवां इसमें वृद्धि आदि दिया जाता है यह-पञ्चमिक। सप्तम सातवां इसमें वृद्धि-आदि दिया जाता है यह-सप्तमिक। (अर्धम्) अर्ध-आधा कार्षापण (आधे रुपये) इस व्यवहार में वृद्धि-आदि दिया जाता है यह-अर्धिक । अर्ध-शब्द आधा रुपया अर्थ में रूढ है।
सिद्धि-(१) द्वितीयिक: । द्वि+ओस्+तीय । द्वि+तीय। द्वितीय+सु+छन् । द्वितीय+इक। द्वितीयिक+सु। द्वितीयिकः ।
यहां प्रथम द्वि' शब्द से पूरण-अर्थ में द्वस्तीयः' (५।२।५४) से तीय प्रत्यय है। तत्पश्चात् पूरण-प्रत्ययान्त द्वितीय' शब्द से अस्मिन्-अर्थ में तथा वृद्ध्यादिकं दीयते' अभिधेय में इस सूत्र से ठन्' प्रत्यय है। ऐसे ही-तृतीयिकः।
(२) पञ्चमिकः । यहां प्रथम पञ्चन्' शब्द से पूरण अर्थ में नान्तादसंख्यादेर्मट् (५ ।२।४९) से 'डट्' प्रत्यय और उसे मट्-आगम होने पर 'पञ्चम' शब्द सिद्ध होता है। तत्पश्चात् पूरण-प्रत्ययान्त पञ्चम' शब्द से अस्मिन्-अर्थ में तथा वृद्ध्यादिकं दीयते' अभिधेय में इस सूत्र से ठन्' प्रत्यय है। ऐसे ही-साप्तमिकः ।
(३) अर्धिकः । यहां रूपक-अर्ध अर्थ में रूढ 'अर्ध' शब्द से पूर्ववत् 'ठन्' प्रत्यय है। यत्+ठन्
(३) भागाद् यच्च।४८। प०वि०-भागात् ५ १ यत् ११ च अव्ययपदम् ।
अनु०-तत्, अस्मिन्, वृद्ध्यायलाभशुल्कोपदा:, दीयते, ठन् इति चानुवर्तते।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org