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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
५०५ उदा०-बहु=बहुत है श्रेयान् प्रशस्य जन जिसमें वह-बहुश्रेयान् ग्राम। बहुश्रेयसी नगरी।
सिद्धि-(१) बहुश्रेयान् । यहां बहु और श्रेयस् शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। प्रशस्य शब्द से 'द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ' (५।३।५७) से ईयसुन् प्रत्यय और प्रशस्यस्य श्रः' (५।३।६०) से प्रशस्य' को 'श्र' आदेश होता है। ईयसन्त बहुश्रेयस्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त कप् प्रत्यय का प्रतिषेध है। शेषाद् विभाषा' (५।४।१५ ४) से कप् प्रत्यय प्राप्त था।
(२) बहुश्रेयसी। यहां गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य' (१।२।४८) से प्राप्त ह्रस्वत्व का , वा०-'ईयसो बहुव्रीहे: प्रतिषेधो वक्तव्यः' (१।२।४८) से ह्रस्वत्व का प्रतिषेध होता है। कप्-प्रतिषेधः
___ (४५) वन्दिते भ्रातुः ।१५७। प०वि०-वन्दिते ७।१ भ्रातु: ५।१। अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, कप्, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ वन्दिते च भ्रातु: समासान्त: कप् न।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे वन्दिते चार्थे वर्तमानाद् भ्रातृ-शब्दात् प्रातिपदिकात् समासान्त: कप् प्रत्ययो न भवति । वन्दित: स्तुत:, पूजित इत्यर्थः।
उदा०-शोभनो भ्राता यस्य स:-सुभ्राता।
आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में तथा (वन्दिते) पूजित अर्थ में विद्यमान (भ्रातः) भ्रातृ शब्द से (समासान्तः) समास का अवयव (कम्) कप् प्रत्यय (न) नहीं होता है।
उदा०-सु-पूजित है भ्राता जिसका वह-सुभ्राता।
सिद्धि-सुभ्राता। यहां सु और भ्राता शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। सुभ्रातृ' शब्द से इस सूत्र से वन्दित=पूजित अर्थ में समासान्त कम्' प्रत्यय का प्रतिषेध है। कप्-प्रतिषेधः
(४६) ऋतश्छन्दसि।१५८ । प०वि०-ऋत: ५।१ छन्दसि ७।१।
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