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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
आर्यभाषाः अर्थ- (बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (सुहृददुर्हृदौ) सुहृद् और दुर्हृद् शब्द (मित्रामित्रयोः ) यथासंख्य मित्र और अमित्र अर्थ में (समासान्तौ) समास के अवयव रूप में निपातित हैं।
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यहां सु-शब्द से परे हृदय शब्द को समासान्त हृद् आदेश और दुर् शब्द से परे हृदय शब्द को समासान्त हृद् आदेश निपातित है।
उदा०-सु-अच्छा है हृदय जिसका वह सुहृद् मित्र । दुर्-खराब है हृदय जिसका वह दुर्हृद् अमित्र (शत्रु) ।
सिद्धि-सुहृद् । यहां सु और हृदय शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है । 'सुहृदय' के हृदय शब्द को इस सूत्र से मित्र अर्थ में समानान्त हृद्- आदेश निपातित है। ऐसे ही दुर्हृद् ।
कप्
( ३६ ) उरःप्रभृतिभ्यः कप् । १५१ । प०वि० - उरःप्रभृतिभ्यः ५ । ३ कप् १ । १ ।
स०-उरःप्रभृतिर्येषां ते उरःप्रभृतयः, तेभ्यः - उरःप्रभृतिभ्यः ( बहुव्रीहि: ) ।
अनु० - समासान्ता:, बहुव्रीहौ इति चानुवर्तते । अन्वयः - बहुव्रीहौ उरःप्रभृतिभ्यः समासान्तः कप् । अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे उरःप्रभृत्यन्तेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः समासान्तः कप् प्रत्ययो भवति ।
उदा० - व्यूढमुरो यस्य स: - व्यूढोरस्क: । प्रियं सर्पिर्यस्य स:प्रियसर्पिष्कः । अवमुक्ते उपानहौ येन सः - अवमुक्तोपानत्कः, इत्यादिकम् । उरस् । सर्पिस्। उपानह्। पुमान्। अनड्वान् । नौः । पयः । लक्ष्मी: दधि। मधु। शालिः । अर्थान्नञः। अनर्थकः। इत्युरःप्रभृतयः ।।
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आर्यभाषाः अर्थ- (बहुव्रीहौ ) बहुव्रीहि समास में ( उरःप्रभृतिभ्यः) उरस् आदि शब्द जिसके अन्त में हैं उन प्रातिपदिकों से (समासान्तः) समास का अवयव (कप्) कम् प्रत्यय होता है।
उदा० - व्यूढ = फैला हुआ (चोड़ा) है उरस् (छाती) जिसका वह व्यूढोरस्क । प्रिय है सर्पिस् (घृत) जिसका वह प्रियसर्पिष्क । अवमुक्त = छोड़ दिया है उपानत् = जूता जिसने वह - अवमुक्तोपानत्क इत्यादि ।
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