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________________ ४७६ पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, असिच् इति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि बहुव्रीहौ बहुप्रजा: समासान्तोऽसिच् । अर्थ:-छन्दसि विषये बहुव्रीहौ समासे बहुप्रजा इत्यत्र समासान्तोऽसिच् प्रत्ययो निपात्यते। उदा०-बही प्रजा यस्य स:-बहुप्रजा: । बहुप्रजा निऋतिमाविवेश (ऋ० १।१६४ ।३२)। आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (बहुप्रजा:) बहुप्रजा इस पद में (समासान्त:) समास का अवयव (असिच्) असिच् प्रत्यय निपातित है। उदा०-बहुत ही प्रजा सन्तान जिसकी वह-बहुप्रजा। बहुप्रजा निऋतिमाविवेश (ऋ० १।१६४।३२)। बहुत सन्तानवाला पुरुष दुःख में दाखिल होता है। सिद्धि-बहुप्रजा: शब्द की सिद्धि ‘अप्रजाः' शब्द के समान है। अनिच् (१२) धर्मादनिच् केवलात् ।१२४ । प०वि०-धर्मात् ५।१ अनिच् ११ केवलात् ५।१। अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ केवलाद् धर्मात् समासान्तोऽनिच् । अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे केवल-पदात् परस्माद् धर्म-शब्दान्तात् प्रातिपदिकात् समासान्तोऽनिच् प्रत्ययो भवति। उदा०-कल्याणं धर्मो यस्य स:-कल्याणधर्मा । वेदधर्मा । सत्यधर्मा । आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (केवलात्) केवल एक पद से परे (धर्मात्) धर्म शब्द जिसके अन्त में है उस प्रातिपदिक से (समासान्त:) समास का अवयव (अनिच्) अनिच् प्रत्यय होता है। उदा०-कल्याण भलाई करना जिसका धर्म है वह-कल्याणधर्मा । वेद के अनुसार आचरण करना जिसका धर्म है वह-वेदधर्मा। सत्यभाषण करना जिसका धर्म है वहसत्यधर्मा। . सिद्धि-कल्याणधर्मा । कल्याण+सु+धर्म+सु। कल्याण+धर्म+अनिच् । कल्याणधर्म+ अन् । कल्याणधर्मन्+सु । कल्याणधर्मान्+सु। कल्याणधर्मान्+० । कल्याणधर्मा। । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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