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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-गौ: बैल के अनु-आयाम (लम्बाई) का-अनुगव यान (रथ) । बैलों के नाप को ध्यान में रखकर बनाया गया पूरा लम्बा रथ। ___सिद्धि-अनुगवम् । अनु+सु+गो+डस् । अनु+गो। अनुगो+अच्। अनुगव+सु । अनुगवम्।
यहां आयाम अर्थ में विद्यमान 'अनुगो' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय निपातित है। यहां यस्य चायाम:' (२।१।१६) से अव्ययीभाव समास होता है।
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(१७) द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः।८४। प०वि०-द्विस्तावा १।१ त्रिस्तावा ११ वेदि: १।१। अनु०-समासान्ता:, अच् इति चानुवर्तते। अन्वय:-द्विस्तावा त्रिस्तावा समासान्तोऽच्, वेदिः ।
अर्थ:-द्विस्तावा, त्रिस्तावा इत्यत्र समासान्तोऽच् प्रत्ययो निपात्यते, वेदिश्चेत् सा भवति।
उदा०-द्विस्तावती-द्विस्तावा वेदिः । त्रिस्तावती-त्रिस्तावा वेदिः ।
यावती प्रकृतौ वेदिविहिता ततो द्विगुणा त्रिगुणा वा कस्याञ्चिद् विकृतौ वेदिर्विधीयते तत्रेदं निपातनं वेदितव्यम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(द्विस्तावा, त्रिस्तावा) द्विस्तावा, त्रिस्तावा यहां (समासान्त:) समास का अवयव (अच्) अच् प्रत्यय निपातित है (वदिः) यदि वह वेदि हो।
उदा०-द्विगुणा वेदि-द्विस्तावा। त्रिगुणा वेदि-त्रिस्तावा।
मूलयज्ञ में जितनी बड़ी वेदि का विधान किया गया है यदि किसी अश्वमेध आदि विकृति याग में उससे दुगुणी वा तिगुणी बड़ी वेदि बनाई जाये उसे द्विस्तावा वा त्रिस्तावा वेदि कहते हैं।
सिद्धि-द्विस्तावा। द्विस्+सु+तावत्+सु । द्विस्तावत्+अच् । द्विस्ताव+अ। द्विस्ताव+टाप् । द्विस्तावा+सु । द्विस्तावा।
यहां वेदि अर्थ अभिधेय में द्विस्तावत्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त अच् प्रत्यय है, निपातन से अंग के टि-भाग (अत्) का लोप और समास निपातित है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-ब्रिस्तावा।
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