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________________ ४४० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-श्वोवसीयसम् । श्वस्+सु+वसीयस्+सु । श्वस्+वसीयस् । श्वोवसीयस्+अच् । श्वोवसीयस+सु। श्वोवसीयसम्। यहां कर्मधारय तत्पुरुष समास में विद्यमान 'श्वोवसीयस्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय होता है। ऐसे ही-श्वःश्रेयसम् । यहां 'मयूरव्यंसकादयश्च (२।१।७२) से कर्मधारय समास है। अच् (१४) अन्ववतप्ताद्रहसः।८१। प०वि०-अनु-अव-तप्तात् ५।१ रहस: ५।१ । स०-अनुश्च अवश्च तप्तं च एतेषां समाहार:-अन्ववतप्तम्, तस्मात्-अन्ववतप्तात् (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-समासान्ता:, अच् इति चानुवर्तते। अन्वयः-अन्ववतप्ताद् रहस: समासान्तोऽच् । अर्थ:-अन्ववतप्तेभ्य: परस्माद् रह:शब्दान्तात् प्रातिपदिकात् समासान्तोऽच् प्रत्ययो भवति । उदा०-(अनु:) अनुगतं रह:-अनुरहसम्। (अव) अवहीनं रह:अवरहसम्। (तप्तम्) तप्तं रह:-तप्तरहसम् । आर्यभाषा: अर्थ-(अन्ववतप्तात्) अनु, अव, तप्त शब्दों से परे (रहस:) रहस् शब्द जिसके अन्त में उस प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (अच्) अच् प्रत्यय होता है। उदा०-(अनु) अनुगतं रह:-अनुरहस। रहस्य के अनुसार। (अव) अवहीन रह:-अवरहस । घटिया रहस्य। (तप्त) तप्त रह:-तप्तरहस । तपा हुआ रहस्य। अत्यन्त कठोर रहस्य। सिद्धि-(१) अनुरहसम् । अनु+सु+रहस्+सु। अनु+रहस। अनुरहस्+अच् । अनुरहस+सु। अनुरहसम्। यहां प्रादि-समास में विद्यमानं 'अनुरहस्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। ऐसे ही-अवरहसम् । (२) तप्तरहसम् । यहां विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' (२।१।५७) से कर्मधारय समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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