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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४३७ (५) नक्तन्दिवम् । यहां सप्तमी-अर्थ तथा द्वन्द्व समास में विद्यमान नक्तन्दिवा' शब्द से इस सूत्र से समासान्त अच् प्रत्यय और समास भी निपातित है।
(६) रात्रिन्दिवम् । यहां सप्तमी अर्थ और द्वन्द्व समास में विद्यमान ‘रात्रिदिवा' शब्द से इस सूत्र से 'अच्' प्रत्यय और पूर्व पद का मकारान्त भाव निपातित है।
(७) अहर्दिवम् । अहः और दिवा शब्द पर्यायवाची हैं यहां वीप्सा (व्याप्ति) अर्थ में द्वन्द्व समास और समासान्त अच् प्रत्यय निपातित है। 'च' के अर्थ में द्वन्द्व समास होता है, अत: यहां वीप्सा अर्थ में निपातित किया गया है।
(८) सरजसम् । सह+सु+रजस्+टा। सह+रजस्। स+रजस् । सरजस्+अच् । सरजस+सु। सरजसम्।
यहां अव्ययीभाव समास में विद्यमान 'सरजस्' शब्द से इस सूत्र से 'अच्' प्रत्यय निपातित है। यहां 'अव्ययं विभक्तिः ' (२।१।६) से अव्ययीभाव और 'अव्ययीभावे चाकाले (६।३।८१) से 'सह' को 'स' आदेश होता है।
(९) निश्श्रेयसम् । निस्+सु+श्रेयस्+सु। निश्श्रेयस्+अच् । निश्श्रेयस+सु। निश्श्रेयसम्।
__यहां प्रादितत्पुरुष समास में विद्यमान निश्श्रेयस्' शब्द से इस सूत्र से 'अच्' प्रत्यय निपातित है।
(१०) जातोक्षः। यहां कर्मधारय समास में विद्यमान जातोक्षन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। 'नस्तद्धितें' (६।४।१४४) अंग के टि-भाग (अन्) का लोप होता है। ऐसे ही-महोक्षः, वृद्धोक्षः ।
(११) उपशुनम् । उप+सु+श्वन्+डस् । उप+श्वन् । अपश्वन्+अच्। उपश्वन्+अ। उपश्उअन्+अ। उपशुन्+अ। उपशुन+सु। उपशुनः ।
यहां अव्ययीभाव समास में विद्यमान उपश्वन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। नस्तद्धिते (६।४।१४४) से प्राप्त अंग के टि-भाग का लोप निपातन से नहीं होता है। श्वयुवमघोनामतद्धिते (६।४।१३३) से अप्राप्त सम्प्रसारण निपातन से किया जाता है। सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०६) से अकार को पूर्वरूप आदेश होता है।
(१२) गोष्ठश्व: । यहां सप्तमी-समास में विद्यमान गोष्ठश्वन्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। 'नस्तद्धिते (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (अन्) का लोप होता है। अच्
(११) ब्रह्महस्तिभ्यां वर्चसः ७८ प०वि०-ब्रह्म-हस्तिभ्याम् ५।२ वर्चस: ५।१ ।
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