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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सरजसम् रजसां साकल्यम्-सरजसम्, रज:-धूल को न छोड़कर-सरजस ।
सरजमसभ्यवहरति- सरजस=धूल सहित खाता-पीता है। निश्श्रेयसम् निश्चिन्तं श्रेय:-निःश्रेयसम् निश्चित श्रेय:-सुख निश्श्रेयस (मोक्ष)। पुरुषायुषम् पुरुषस्यायु:-पुरुषायुषम् पुरुष की आयु-पुरुषायुष-सौ वर्ष। व्यायुषम् द्वयोरायुषो: समाहारो व्यायुषम् दो आयुओं का समाहार
व्यायुष-दो सौ वर्ष। त्र्यायुषम् त्रयाणामायुषां समाहार:-त्र्यायुषम् तीन आयुओं का समाहार
त्र्यायुष-तीन सौ वर्ष। ऋग्यजुषम् ऋक् च यजुश्च-ऋग्यजुषम् ऋक् और यजुष् के मन्त्र-ऋग्यजुष। जातोक्षः जातश्चासावुक्षा च-जातोक्ष: जात-उत्पन्न उक्षा बैल-जातोक्ष। महोक्षः महाँश्चासावुक्षा च-महोक्षः महान् बड़ा उक्षा बैल-महोक्ष। वृद्धोक्षः वृद्धश्चासाचुक्षा च-वृद्धोक्ष: वृद्ध–बूढा उक्षा=बैल-वृद्धोक्ष। उपशुनम् शुन: समीपम्-उपशुनम् श्वा=कुत्ते के समीप-उपशुन। गोष्ठश्व: गोष्ठे श्वा-गोष्ठश्व: गोष्ठ-गोशाला में रहनेवाला
श्वा=कुत्ता-गोष्ठश्व। आर्यभाषा: अर्थ-(अचतुरगोष्ठश्वाः) चतुर आदि शब्द (समासान्त:) समास के अवयव (अच्) अच्-प्रत्ययान्त निपातित है।
उदा०-उदाहरण और इनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में देख लेवें।
सिद्धि-(१) अचतुरः । नञ्+सु+चतु+जस्। न+चतुर् । अचतुर्+अच् । अचतुर+सु। अचतुरः।
___ यहां बहुव्रीहिः समास में विद्यमान 'अचतुर्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्' प्रत्यय है। ऐसे ही-विचतुरः, सुचतुरः ।
(२) स्त्रीपुंसौ। यहां द्वन्द्व समास में विद्यमान स्त्रीपुंस्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अच्’ प्रत्यय है। ऐसे ही-धेन्वनडुहौ, ऋक्सामे, वाङ्मनसे, अक्षिध्रुवम्, दारगवम्।
(३) ऊर्वष्ठीवम् । यहां द्वन्द्व समास में विद्यमान ऊर्वष्ठीवत्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त अच् प्रत्यय और अंग के टि-भाग (अत्) का लोप निपातित है।
(४) पदष्ठीवम् । यहाँ द्वन्द्व समास में विद्यमान पादाष्ठीवत्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त अच् प्रत्यय और 'पाद' को पद्' आदेश निपातित है।
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