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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् समासान्त 'अ' प्रत्यय होता है। 'अ' प्रत्यय के समासान्त-समास का अवयव होने से स्त्रीत्व-विवक्षा में द्विगो:' (४।१।२१) से डीप् प्रत्यय होता है। ऐसे ही-त्रिपुरी।
(३) कोशनिषदिनी। कोशनिषद्+टच्। कोशनिषद्+अ। कोशनिषद+इनि। कोशनिषद्+इन्। कोशनिषदिन्+डी। कोशनिषदिनी+सु। कोशनिषदिनी+० । कोशनिषदिनी।
__यहां द्वन्द्वसंज्ञक कोशनिषद्' शब्द से द्वन्द्वाच्चुदषहान्तात् समाहारे' (५ । ४ ।१०६) से समासान्त टच्' प्रत्यय होता है। 'टच' प्रत्यय के समासान्त-समास का अवयव होने से द्वन्द्वोपतापगात् प्राणिस्थादिनि:' (५।२।१२८) से इनि' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् स्त्रीत्व-विवक्षा में 'ऋन्नेभ्यो डीप' (४।११५) से डीप् प्रत्यय होता है। ऐसे हीस्त्रक्वचिनी।
(४) विधुरः । वि+सु+धुर्+सु। विधुर्+अ । विधुर+सु। विधुरः ।
यहां वि और धुर् शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास है। तत्पश्चात् विधुर्' शब्द से ऋक्पूरबधूःपथामानक्षे (५।४।७४) से समासान्त 'अ' प्रत्यय होता है। 'अ' प्रत्यय के समासान्त समास का अवयव होने से तत्पुरुषे तुल्यार्थतृतीयासप्तम्युपमानाव्ययद्वितीयाकृत्या:' (६।२।२) से पूर्वपद प्रकृति स्वर होता है। उपसर्गाश्चाभिवर्जम्' (फिट० ४ ।१३) से वि' उपसर्ग का आयुदात्त स्वर है-विधुरः । ऐसे ही-प्रधुरः ।
(५) उच्चैधुरः । उच्चैस्+सु+धु+सु। उच्चैधुर्+अ । उच्चैधुर+सु। उच्चैधुरः । ___ यहां उच्चैस् और धुर् शब्द का बहुव्रीहि समास है। तत्पश्चात् उच्चैधुर' शब्द से पूर्ववत् समासान्त 'अ' प्रत्यय होता है। 'अ' प्रत्यय के समसान्त समास का अवयव होने से यहां बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम्' (६।२।१) से 'उच्चैस्' शब्द का पूर्वपद का प्रकृति स्वर होता है। उच्चैस्' शब्द स्वरादिगण में अन्तोदात्त पठित है-उच्चैधुरः । ऐसे ही-नीचैधुरः। समासान्तप्रत्ययप्रतिषेधः
(२) न पूजनात्।६६ । प०वि०-न अव्ययपदम्, पूजनात् ५।१ । अनु०-समासान्ता इत्यनुवर्तते। अन्वय:-पूजनात् परस्मात् प्रातिपदिकात् समासान्ता न।
अर्थ:-पूजनवाचिन: परस्मात् प्रातिपदिकात् समासान्ता प्रत्यया न भवन्ति।
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