SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् शम्बा करोति । अनुलोमकृष्टं क्षेत्रं पुन: प्रतिलोमं कृषतीत्यर्थः । (बीजम्) बीजेन सह कर्षणं करोति-बीजा करोति। आर्यभाषा: अर्थ-(कृञः) कृञ् के योग में और (कृषौ) कृषि-हल चलाने अर्थ में विद्यमान (द्वितीयतृतीयशम्बबीजात्) द्वितीय, तृतीय, शम्ब, बीज प्रातिपदिकों से (डाच्) डाच् प्रत्यय होता है। उदा०-(द्वितीय) खेत में दूसरी बार हल चलाता है-द्वितीया करता है (दोसर करता है)। (ततीय) खेत में तीसरी बार हल चलाता है-तृतीया करता है तिसर करता है)। (शम्ब) अनुलोम हल चलाये हुये खेत में पुन: प्रतिलोम हल चलाता है-शम्बा करता है। (बीज) बीज के सहित हल चलाता है-बीजा करता है (बीजाई करता है)। सिद्धि-द्वितीया करोति । द्वितीय+अम्+डाच् । द्वितीय+आ। द्वितीया+सु । द्वितीया+० । द्वितीया। यहां कृञ्' के योग में और कृषि हल चलाने अर्थ में विद्यमान द्वितीय' शब्द से इस सूत्र से 'डाच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-तृतीया करोति, आदि । डाच (२) संख्यायाश्च गुणान्तायाः।५६। प०वि०-संख्याया: ५ १ च अव्ययपदम्, गुणान्ताया: ५।१ । स०-गुणशब्दोऽन्ते (समीपे) यस्या: सा-गुणान्ता:, तस्या:-गुणान्तायाः (बहुव्रीहिः)। अनु०-डाच्, कृञः, कृषाविति चानुवर्तते। अन्वय:-कृञ्योगे कृषौ गुणान्तायाः संख्यायाश्च डाच् । अर्थ:-कृञ्योगे कृषि-अर्थे वर्तमानाद् गुणान्तात् संख्यावाचिन: प्रातिपदिकाड् डाच् प्रत्ययो भवति । उदा०-क्षेत्रस्य द्विगुणं कर्षणं करोति-द्विगुणा करोति क्षेत्रम्। त्रिगुणा करोति क्षेत्रम्। आर्यभाषा: अर्थ- (कृञः) कृञ् के योग में और (कृषौ) हल चलाने अर्थ में विद्यमान (गुणान्त:) गुण शब्द जिसके अन्त में है उस (संख्यायाः) संख्यावाची प्रातिपदिक से (डाच्) डाच् प्रत्यय होता है। उदा०-खेत में द्विगुण दुगना हल चलाता है-द्विगुणा करता है। खेत में त्रिगुण तिगुना हल चलाता है-त्रिगुणा करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy