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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् शम्बा करोति । अनुलोमकृष्टं क्षेत्रं पुन: प्रतिलोमं कृषतीत्यर्थः । (बीजम्) बीजेन सह कर्षणं करोति-बीजा करोति।
आर्यभाषा: अर्थ-(कृञः) कृञ् के योग में और (कृषौ) कृषि-हल चलाने अर्थ में विद्यमान (द्वितीयतृतीयशम्बबीजात्) द्वितीय, तृतीय, शम्ब, बीज प्रातिपदिकों से (डाच्) डाच् प्रत्यय होता है।
उदा०-(द्वितीय) खेत में दूसरी बार हल चलाता है-द्वितीया करता है (दोसर करता है)। (ततीय) खेत में तीसरी बार हल चलाता है-तृतीया करता है तिसर करता है)। (शम्ब) अनुलोम हल चलाये हुये खेत में पुन: प्रतिलोम हल चलाता है-शम्बा करता है। (बीज) बीज के सहित हल चलाता है-बीजा करता है (बीजाई करता है)।
सिद्धि-द्वितीया करोति । द्वितीय+अम्+डाच् । द्वितीय+आ। द्वितीया+सु । द्वितीया+० । द्वितीया।
यहां कृञ्' के योग में और कृषि हल चलाने अर्थ में विद्यमान द्वितीय' शब्द से इस सूत्र से 'डाच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-तृतीया करोति, आदि । डाच
(२) संख्यायाश्च गुणान्तायाः।५६। प०वि०-संख्याया: ५ १ च अव्ययपदम्, गुणान्ताया: ५।१ ।
स०-गुणशब्दोऽन्ते (समीपे) यस्या: सा-गुणान्ता:, तस्या:-गुणान्तायाः (बहुव्रीहिः)।
अनु०-डाच्, कृञः, कृषाविति चानुवर्तते। अन्वय:-कृञ्योगे कृषौ गुणान्तायाः संख्यायाश्च डाच् ।
अर्थ:-कृञ्योगे कृषि-अर्थे वर्तमानाद् गुणान्तात् संख्यावाचिन: प्रातिपदिकाड् डाच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०-क्षेत्रस्य द्विगुणं कर्षणं करोति-द्विगुणा करोति क्षेत्रम्। त्रिगुणा करोति क्षेत्रम्।
आर्यभाषा: अर्थ- (कृञः) कृञ् के योग में और (कृषौ) हल चलाने अर्थ में विद्यमान (गुणान्त:) गुण शब्द जिसके अन्त में है उस (संख्यायाः) संख्यावाची प्रातिपदिक से (डाच्) डाच् प्रत्यय होता है।
उदा०-खेत में द्विगुण दुगना हल चलाता है-द्विगुणा करता है। खेत में त्रिगुण तिगुना हल चलाता है-त्रिगुणा करता है।
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