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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-नीतौ, तयुक्तात्, बहच:, मनुष्यनाम्नः, घनिलचौ इति चानुवर्तते।
अन्वय:-तद्युक्ताद् उपादेर्बचो मनुष्यनाम्नोऽडजवुचौ घनिलचौ च नीतौ प्राचाम्।
अर्थ:-तयुक्तात् अनुकम्पायुक्ताद् उपादेर्बचो मनुष्यनामवाचिन: प्रातिपदिकाद् अडवुचौ घनिलचौ च प्रत्ययौ भवत:, नीतौ गम्यमानायाम्, प्राचामाचार्याणां मतेन।
उदा०-अनुकम्पित उपेन्द्रदत्त:-उपड: (अडच्)। उपक: (वुच्) । उपिय: (घन्) । उपिल: (इलच्) प्राचां मते । उपिक: (ठच्)। उपेन्द्रदत्तक: (क:) पाणिनिमते।
आर्यभाषा: अर्थ-(तयुक्तात्) अनुकम्पा अर्थ से युक्त (उपादे:) उप शब्द जिसके आदि में है उस (बहच:) बहुत अचोंवाले (मनुष्यनाम्न:) मनुष्यनामवाची प्रातिपदिक से (अडवुचौ) अडच्, वुच् और (घनिलचौ) घन् तथा इलच् प्रत्यय (च) भी होते हैं (नीतौ) यदि वहां नीति अर्थ की प्रतीति हो (प्राचाम्) प्राक्-देशीय आचार्यों के मत में।
___ उदा०-अनुकम्पित उपेन्द्रदत्त-उपड (अडच्)। उपक (वुच्)। उपिय (घन्)। उपिल (इलच्)। प्राक्-देशीय आचार्यों के मत में। पाणिनिमुनि के मत में यथाप्राप्त प्रत्यय होते हैं-उपिक (ठच्)। उपेन्द्रदत्तक (क)।
सिद्धि-(१) उपड: । उपेन्द्रदत्त+सु+अडच् । उप०+अड। उप+अड। उपड+सु । उपड:।
यहां अनुकम्पा अर्थ से युक्त, उप-आदिमान्, बहुत अचोंवाले, मनुष्यनामवाची उपेन्द्रदत्त' शब्द से नीति अर्थ अभिधेय में तथा प्राक्-देशीय आचार्यों के मत में इस सूत्र से 'अडच्' प्रत्यय है। ठाजादावर्ध्वं द्वितीयादच:' (५।३।८३) से उपेन्द्रदत्त' के द्वितीय अच् से ऊर्ध्व विद्यमान इन्द्रदत्त' शब्द का लोप होता है।
(२) उपकः । यहां पूर्वोक्त 'उपेन्द्रदत्त' शब्द से इस सूत्र से 'वुच्' प्रत्यय है। युवोरनाको' (७।१।१) से वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) उपियः । यहां पूर्वोक्त उपेन्द्रदत्त' शब्द से इस सूत्र से घन्' प्रत्यय होता है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'घ्' के स्थान में इय्' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) उपिल: । यहां पूर्वोक्त उपेन्द्रदत्त' शब्द से इस सूत्र से 'इलच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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