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________________ पञ्चमाध्यायस्य तृतीय पादः ३२७ आर्यभाषा: अर्थ-(प्रकारवचने) प्रकार के प्रकाशन अर्थ में विद्यमान (सुप:) सुबन्त शब्द से (जातीयर्) जातीयर् प्रत्यय होता है। उदा०-पण्डितप्रकार (पण्डितविशेष)-पण्डितजातीय। पटुप्रकार-पटुजातीय। मृदुप्रकार-मृदुजातीय। दर्शनीयप्रकार-दर्शनीयजातीय। सिद्धि-पण्डितजातीय: । पण्डित+सु+जातीयर् । पण्डित+जातीय । पण्डितजातीय+सु। पण्डितजातीयः। यहां प्रकारवचन अर्थ में विद्यमान, सुबन्त पण्डित' शब्द से स्वार्थ में इस सूत्र से जातीयर् प्रत्यय है। ऐसे ही-पटुजातीयः, मूदुजातीय:, दर्शनीयजातीय: । प्रागिवीयार्थप्रत्ययप्रकरणम् क-अधिकार: (१) प्रागिवात् कः ।७०। प०वि०-प्राक् ११ इवात् ५ १ क: १।१। अन्वय:-इवात् प्राक् कः। अर्थ:- इवे प्रतिकृतौ' (५ ।३।९६) इति वक्ष्याति, एस्माद् इवशब्दात् प्राक् क: प्रत्ययो भवति, इत्यधिकारोऽयम् । वक्ष्यति-'अज्ञाते (५।३।७३) इति । अज्ञातोऽश्व:-अश्वकः । गर्दभकः । उष्ट्रक:। आर्यभाषा: अर्थ-(इवात्) इवे प्रतिकृतौ' (५।३।९६) इस सूत्र में पठित 'इव' शब्द से (प्राक्) पहले-पहले (क:) क प्रत्यय होता है, यह अधिकार सूत्र है। उदा०-जैसे पाणिनिमुनि कहेंगे 'अज्ञाते' (५।३।७३) अर्थात् अज्ञात अर्थ में विद्यमान प्रातिपदिक से 'क' प्रत्यय होता है। अज्ञात अश्व-अश्वक । अज्ञात गर्दभ (गधा)गर्दभक । अज्ञात उष्ट्र (ऊंट)-ऊष्ट्रक। सिद्धि-अश्वकः । अश्व+सु+क। अश्व+क। अश्वक+सु । अश्वकः ।। यहां 'अज्ञाते (५ ।३।७३) से प्रागिवीय अज्ञात अर्थ में विद्यमान 'अश्व' शब्द से क' प्रत्यय है। ऐसे ही-गर्दभकः । उष्ट्रकः । अकच्-अधिकार: (२) अव्ययसर्वनाम्नामकच् प्राक् टेः ७१। प०वि०-अव्यय-सर्वनाम्नाम् ६।३ अकच् १।१ प्राक् ११ टे: ५।१। स०-अव्ययानि च सर्वनामानि च तानि-अव्ययसर्वनामानि, तेषाम्अव्ययसर्वनाम्नाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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