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पञ्चमाध्यायस्य तृतीय पादः
३०५
उदा०- (द्वि:) द्वाभ्यां विधाभ्यां भुङ्क्ते द्विधा भुङ्क्ते (धा: ) । द्वैधं भुङ्क्ते (धमुञ्) । एकं राशिं द्वौ राशी करोति-द्विधा करोति (धा: ) । द्वैधं करोति (धमुञ्) । (त्रिः ) तिसृभिर्विधाभिर्भुङ्क्ते - त्रिधा भुङ्क्ते ( धा: ) । धं भुङ्क्ते (धमुञ्) । एकं राशिं त्रीन् राशीन् करोति-त्रिधा करोति (धा: ) । त्रैधं करोति (धमुञ्) ।
आर्यभाषाः अर्थ- (संख्यायाः ) संख्यावाची (द्वित्र्योः) द्वि, त्रि प्रातिपदिकों से (च) भी परे (विधार्ये) विधा- अर्थ में (च) और (अधिकरणविचाले) द्रव्य को संख्यान्तर बनाने अर्थ में विहित (धः ) धा प्रत्यय के स्थान में (अन्यतरस्याम् ) विकल्प से (धमुञ्) धमुञ् आदेश होता है।
उदा०- - (द्वि) दो प्रकार से खाता-पीता है-द्विधा खाता-पीता है (धा) । द्वैध खाता-पीता है (धमुञ्) । एक राशि को दो राशि बनाता है - द्विधा बनाता है (धा) । द्वैध बनाता है (धमुञ्) । (त्रि) तीन प्रकार से खाता-पीता है- त्रिधा खाता-पीता है (धा) । त्रैध खाता-पीता है (धमुञ्) । एक राशि को तीन राशि बनाता है - त्रिधा बनाता है (धा) । वैध बनाता है (धमुञ्) ।
सिद्धि - (१) द्विधा । यहां विधा- अर्थ में तथा अधिकरणविचाल अर्थ में 'द्वि' शब्द से विहित 'धा' प्रत्यय को 'धमुञ्' आदेश नहीं है । ऐसे ही - त्रिधा ।
(२) द्वैधम् । द्वि + औ+धा । द्वि+धमुञ् । द्वै+धम् । द्वैधम्+सु । द्वैधम्+0 | द्वैधम् । यहां विधा- अर्थ तथा अधिकरणविचाल अर्थ में विद्यमान द्वि' शब्द से विहित 'धा' प्रत्यय के स्थान में विकल्प पक्ष में 'धमुञ्' आदेश है। 'तद्धितेष्वचामादेः' (७/२/११७) से अंग को आदिवृद्धि होती है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - त्रैधम् ।
एधाच्-आदेशः
(५) एधाच् च । ४६ ।
प०वि० - एधाच् १ । १ च अव्ययपदम् ।
अनु० - संख्यायाः, विधार्थे, अधिकरणविचाले, च, धः, अन्यतरस्याम् इति चानुवर्तते।
अन्वयः-संख्याया:=संख्यावाचिभ्यां द्वित्रिभ्यां विधार्थेऽधिकरणविचाले च धोऽन्यतरस्याम् एधाच् च ।
अर्थ :- संख्यवाचिभ्यां द्वित्रिभ्यां परस्य विधार्थेऽधिकरणविचाले चार्थे विहितस्य धा-प्रत्ययस्य स्थाने विकल्पेन एधाच् आदेशो भवति ।
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